Category: अगला-कदम
जीव समास
संयम मार्गणा में असंयम तथा सम्यक्त्व में मिथ्यात्व क्यों लिया गया ? जीव बहुत बड़ी संख्या में इन श्रेणियों में भी पाये जाते हैं । संयम/सम्यक्त्व
उपशम भाव/चारित्र
कषायों की मंदता से 4 गुणस्थान से, उपशम चारित्र – 8-10 गुणस्थान में । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
छदमस्थ
छदमस्थ किन गुणस्थानों में मानें ? श्रावक – 1 से 5 तक, मुनि – सरागी – 6 से 10 तक, वीतरागी – 11, 12, गुणस्थानवर्ती
सप्तम गुणस्थान
क्या विहार/प्रवृत्ति में भी सप्तम गुणस्थान होता है ? परिहार विशुद्धि में 6 व 7 गुणस्थान होते हैं । 6 व 7 गुणस्थानों के काल
अपर्याप्तक
विग्रह गति में अपर्याप्तक, योनि स्थल पर पहुँचने के बाद लब्धि या निवृत्ति, बाद में निवृत्ति-अपर्याप्तक ही पर्याप्तक बन जाते हैं । ये चारों विभाजन
क्षायिक सम्यग्दर्शन
क्षायिक सम्यग्दर्शन होते समय मिथ्यात्व का संक्रमण सम्यक्-मिथ्यात्व में और सम्यक्-मिथ्यात्व का सम्यक्-प्रकृति में हो जाता है तब सम्यक्-प्रकृति का क्षय होता है । बाई
परिणमन
रस रक्तादि धातुओं का परिणमन क्रम से और ज्ञानावरणादि कर्मों का युगपद होता है । कर्मकांड़ – 16
उद्योत नामकर्म
एक से लेकर पंचेंद्री संज्ञी तिर्यंचों के होता है । गुणस्थान एक से पाँच तक । बाई जी
बिम्ब दर्शन
सम्यग्दर्शन भगवान के प्रत्यक्ष दर्शन से ज्यादा, जिनबिंब दर्शन से क्यों हो जाता है ? सम्यग्दर्शन विश्वास का विषय है, प्रत्यक्ष दर्शन में विश्वास वाली
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