Category: अगला-कदम
आश्रवबंध
क्या भावाश्रव/द्रव्याश्रव, भावबंध/द्रव्यबंध अलग अलग समयों में होंगे ? नहीं, वरना 10 वे गुणस्थान के अंत में कषाय सहित किया गया आश्रव 11, 12वे गुणस्थान
सम्यक्त्व
क्षायिक सम्यक्त्व – वीतराग सम्यक्त्व है, शेष दो सराग सम्यक्त्व हैं । अमितगति श्रावकाचार शुभोपयोगी चार से सात गुणस्थान में व्यवहार/सराग सम्यक्त्वी, शुद्धोपयोगी सात से
भोगभूमियों में अवगाहना
जघन्य भोगभूमि में मनुष्य 1 कोस का ( मध्यम में 2, उत्तम में 3) तो हाथी 2 कोस का, पर छोटी अवगाहना वाले जानवर मनुष्य
केवलज्ञान
ज्ञान-गुण आत्मा का स्वभाव है । वह केवलज्ञानावरण कर्म से ढ़का हुआ है, उसके हटने से आत्मा का स्वभाव उभर आता है, उसे हम केवलज्ञान
बारहवें गुणस्थान में निगोदिया
निगोदिया जीवों की आखरी आयुकाल तक दूसरे निगोदिया उत्पन्न होते रहते हैं । कम होना तो बारहवें गुणस्थान के शुरू से ही शुरू हो जाता
अशुभोपयोग
मिथ्यादृष्टि के सम्यग्दर्शन के सम्मुख अनिवृतिकरण में अशुभोपयोग की मंदतम दशा, हालाँकि इस समय असंख्यात गुणी निर्जरा भी हो रही होती है । पहले से
भूतार्थ
भूतार्थ यानि सच्चा !! जैसे व्यवहार नय की अपेक्षा व्यवहार नय का विवेचन भूतार्थ है और निश्चय नय का अभूतार्थ, ऐसे ही विपरीत समझना । पं.
स्थिति बंध
दर्शन मोह – मिथ्यात्व का उत्कृष्ट = 70 कोड़ाकोड़ी सागर चारित्र मोह का उत्कृष्ट = 40 कोड़ाकोड़ी सागर असाता का उत्कृष्ट = 30 कोड़ाकोड़ी सागर
आयुबंध
कर्मभूमिज मनुष्य व तिर्यंचों की अपेक्षा मनुष्यायु का बंध दूसरे गुणस्थान तक (क्योंकि सम्यग्दृष्टि मनुष्य/तिर्यंच देव ही बनते हैं, जबकि देव/नारकियों को अगले जन्म में
सर्वघाती कषाय
अनंतानुबंधी, अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान सर्वघाती तो संज्वलन क्यों नहीं ? वह भी तो यथाख्यात चारित्र नहीं होने देती है ? आत्मा का अनुभव तीव्र कषाओं में
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