Category: वचनामृत – अन्य

हिंसा

एक हिंसा, हिंसा के लिये → महान दोष। दूसरी हिंसा, शुभ क्रियाओं में (पूजा, मंदिर निर्माण आदि) → जघन्य दोष। जीव दोनों में मरे, दूसरी

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भारत देश

विदेश भ्रमण करके लौटते समय स्वामी विवेकानंद जी ने कहा – अब मेरा भारत के प्रति दृष्टिकोण बदल गया है। पहले में उसका आदर करता

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संसार की ऊर्जा

संसार की ऊर्जा को जीव तथा अजीव दोनों ही ग्रहण कर सकते हैं। जीव द्वारा ग्रहण तो दिखता है। अजीव में जैसे किसी स्थान में

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सुख / दु:ख

दु:ख पुरुषार्थ करके आता है। सुख बिना पुरुषार्थ किये क्योंकि सुखी रहना तो आत्मा का स्वभाव होता है। मुनि श्री मंगलानंद सागर जी

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परिग्रह / संग्रह

बाँध में पानी संग्रह किया जाता है, अनुग्रह के लिये। परिग्रह में विग्रह है, आसक्ति है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मरण

संसार तथा परमार्थ में मरण उपकारी है –> घातक बीमारी में समाधिमरण में मरण से घरों में जन्म/ संसार चलता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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पाप / पुण्य

पाप का घड़ा छोटा होता है, जल्दी भरकर फूट जाता है। पुण्य का अनंत क्षमता वाला (मोक्ष की अपेक्षा), कभी फूट ही नहीं सकता। निर्यापक

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भाग्य / पुरुषार्थ

काँटा लग‌ना पूर्व के कर्मों से (तथा वर्तमान की लापरवाही से)। लेकिन रोना/ न रोना पुरुषार्थ का विषय। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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साधना

गृहस्थ जीवन जीते हुए साधना कैसे करें ? तुलाराम व्यापारी सामान तौलते समय दृष्टि तराजू पर रखता था। जब तराजू समानांतर हो जाती थी तब

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निद्रा

निद्रा आने पर ग्लानि का भी भाव रहता है। जैसे निद्रा आने पर मनपसंद भोजन, प्रिय बच्चों में भी रुचि नहीं रहती। मुनि श्री प्रणम्यसागर

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मंगल आशीष

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