Category: वचनामृत – अन्य

गुरु

शिक्षक जो सिखाये। टीचर जो पढ़ाये। गुरु जो चलाये। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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स्वभाव

दो प्रकार का… 1. आत्मा का स्वभाव… फलों को खाकर दयापूर्वक गुठली बो देना। 2. वस्तु का स्वभाव…..फलों के पेड़ फल पैदा करते हैं अपनी

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परिग्रह

5 पाप बीमारियां हैं। 4 (हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील) के तो लक्षण दिखते हैं/ इलाज सम्भव है, पर परिग्रह के लक्षण अंतरंग हैं, बाहर से

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पंडित

पंडित विशेषण है, वाचक है। जबकि विद्वान ज्ञानवाचक, उनके लिये “विद्वत श्री” शब्द प्रयोग करना चाहिये, जिसमें सम्मान भी है तथा ज्ञानी होने का प्रतीक।

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बोलना

मशीन जब खराब/ पुरानी हो जाती है तो आवाज करने लगती है। मुनि श्री सुप्रभसागर जी (हम यदि हित, मित, प्रिय नहीं बोल रहे हैं

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अवांछनीय

ज़हर को जानो, धारण मत करो ! ऐसे ही अन्य अवांछनीय चीज़ों के लिये समझें। (ज़हर से तो एक झटके में मृत्यु होती है। अवांछनीय

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अर्थ / परमार्थ

संसार कहता है धन कमाओ, परमार्थ कहता है जीवन को धन्य करो; दोनों में सामंजस्य कैसे बैठायें ? बाएं हाथ से धन कमाओ, दाएं हाथ

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कर्म सिद्धांत

गणेश विसर्जन के समय नाव पलट गयी। भक्तों ने गणेश जी से बचाने के लिये प्रार्थना की। गणेश जी प्रकट तो हुए पर नृत्य करने

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ध्यान

ध्यान दो रूप – 1. चिंतन रूप → गृहस्थों के लिये, गुणवानों के गुणों का। 2. एकाग्रता रूप → साधुओं के लिये। निर्यापक मुनि श्री

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चिंतन / ध्यान

चिंतन ध्यान से पहले की प्रक्रिया। चिंतन में वस्तु के इर्द गिर्द घूमते हैं, ध्यान में वस्तु के केंद्र पर केन्द्रित; दोनों एक साथ चलते

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मंगल आशीष

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