Category: वचनामृत – अन्य

चाह

चाह बुरी नहीं, यह तो नाव की गति के लिये आवश्यक जलप्रवाह है। पर वह प्रवाह बाढ़ नहीं बननी चाहिए वरना जीवन की नाव डूब/

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गुण ग्राहिता

भगवान के अनंत गुणों में से उस गुण की चाह करें जो हमारी कमजोरी हो। आज तक बस गुणगान करते रहे, इसलिए भगवान का कोई

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शिक्षा / विद्या

शिक्षा Broad अर्थ में आती है, विद्या भी इसमें समाहित है। विद्या Specific, जो हमारे जीवन को संवारने के काम आये। इसलिए विद्यार्थी कहा, शिक्षार्थी

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संयम / असंयम

संयम….स्वाधीन है, सरल है। असंयम…पराधीन, कठिन। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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भाग्य / समय

‘भाग्य से अधिक और समय से पहले कुछ नहीं मिलता’ – यह सिद्धांत शुरुआत के लिए खतरनाक है/ पुरुषार्थहीन बना देता है। पुरुषार्थ पूरा करने

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हिंसा

जैन दर्शनानुसार – धार्मिक गृहस्थ लोग हिंसा करते नहीं पर जीवनयापन में हिंसा हो जाती है। उसके लिये उन्हें थोड़ा सा दोष लगता है/ नहीं

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पाप / पुण्य

हस्तिनापुर पापियों की राजधानी, जो पहले समृद्ध थी, वह आज गाँव है। इन्द्रप्रस्थ पुण्यात्माओं की राजधानी, आज देश की राजधानी है (दिल्ली)। निर्यापक मुनि श्री

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धोखा

पहली बार धोखा देने वाले को शर्म आनी चाहिए। दूसरी बार धोखा/ अहित/ नुकसान खाने वाले को शर्म आनी चाहिए क्योंकि आपने अपने आपको संभाला

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आदिनाथ/महावीर भगवान

आदिनाथ भगवान ने जीवों को जीना सिखाया (कृषि आदि षट्कर्म बता कर)। महावीर भगवान ने जीवों को मरने से बचाया। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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दर्द

दर्द दिया नहीं जाता, लिया जाता है। यदि आप लेना न चाहें तो कोई दे नहीं सकता। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मंगल आशीष

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