Category: वचनामृत – अन्य
व्यवसाय / धर्म
व्यवसाय (Profession) –> जीवन चलाने को (परम्परा निभाने)* धर्म –> जीव को चलाने। *जे कम्मे सूरा, ते धम्मे सूरा। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
भेद-विज्ञान
संसार व परमार्थ में प्रगति के लिये हर क्षेत्र में भेद-विज्ञान ज़रूरी है.. 1.हर कार्य के लिये कालों का निश्चय करना। 2.क्षेत्रों में भेद…कहाँ क्या
नदियों में विसर्जन
हिंदु मान्यतानुसार राजा सगर के पुत्रों की भस्म से उन्हें जीवित करने के लिये भागीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतारा। उनके पीछे मुड़कर देखने
दायित्व / कर्तव्य
दायित्व सौंपा जाता है, कर्तव्य निभाया जाता है, जैसे माता पिता बच्चों के प्रति। दायित्व को निभाना कर्तव्य होता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मन, दिल, दिमाग
मन –> संस्कारानुसार काम करता है, दिल –> रागादि से, दिमाग –> बाहरी Information से। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी
प्रमाणिकता
अनुभव/ इंद्रियों पर आधारित प्रमाणिकता गलत भी हो सकती है जैसे पीलिया वाले के रंगों का अनुभव। गुरु/ शास्त्र पर आधारित ज्ञान प्रमाणिक होता है।
कठिन ज्ञान
जो विषय कठिन हो, समझ में न आये; उसे जानने के प्रयास से पुरुषार्थ और ज्ञान में वृद्धि होती है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
दान
माताजी से प्रश्न → बड़े-बड़े लोग बड़े-बड़े दान करते हैं, हमें अनुमोदना करनी चाहिये या नहीं? (क्योंकि अधिक धन तो अधिक दोष सहित आता है)
जिज्ञासा / समाधि
जिज्ञासा अपूर्णता से पैदा होती है या महत्वाकांक्षा बहुत हो जाने पर। जिज्ञासायें समाप्त होने पर/ संतुष्ट होना ही समाधि है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर
निंदा
कड़वी निबोली को चींटी भी नहीं काटतीं, मीठी होने पर नोचने/ खसोटने लगती हैं। यदि आपको कोई सता रहा है/ निंदा कर रहा है तो
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