Category: वचनामृत – अन्य
समता / ममता
समता और ममता सौतन है। एक को ज्यादा महत्त्व दिया तो दूसरी रुठ जाती है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
दया / करुणा
दया…….दु:ख न हो जाय/ दु:ख न देना। करुणा… दु:ख में से निकालना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
देवदर्शन
क्या देवदर्शन टी.वी. पर करने से काम चलेगा ? क्या पिता के जीवित रहते, उनके दर्शन फोटो पर करने से काम चलेगा? साक्षात दर्शन के
कर्म सिद्धांत
जैन दर्शन का कर्म-सिद्धांत पूर्ण स्वतन्त्र है। इसमें भगवान तक पर Dependency/ उनका Interference Allowed नहीं। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
कर्तव्य / कर्तृत्व
कर्तव्य – सामने वाले को एक बार समझाना, कर्तृत्व – बार-बार कहना/ पीछे पड़े रहना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
सोच
आज के युवाओं का सोच – Enjoy. अध्यात्म का – In-Joy. मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मोह
एक बार जब कोई धोखा देता है तो हमें गुस्सा आता है। किन्तु मोह हमें जीवन-भर धोखा देता रहा उस पर हमें प्रेम क्यों आता
धन-दान
धन का दान किस श्रेणी (आहार, औषधि, शास्त्र, अभय/ आवास) में आयेगा ? धन जिस श्रेणी के लिये उपयोग किया जायेगा, उसी श्रेणी में आयेगा।
उदारता
सूरज उनको भी प्रकाशित करता है जो उसे सम्मान नहीं देते। बस प्रकाश को ग्रहण करने का पुण्य होना चाहिये (आँखों में देखने की क्षमता)
विनम्रता
घमंड की अनुपस्थिति का नाम विनम्रता है। मुनि श्री विनम्रसागर जी
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