Category: वचनामृत – मुनि श्री क्षमासागर
चोरी और अचौर्य
बिना अनुमति दूसरे की चीज़ लेना चोरी, पर बिना अनुमति, दूसरे की वस्तु के ग्रहण का, भाव भी नहीं करना, अचौर्य – धर्म । गुरुवर
शाश्वत
मैं परिवर्तन में जीता हूं और मौत से बेहद डरता हूं (हालाँकि मौत भी बदलाव है) यह सोचकर कि शाश्वत में जीना-मरना दोनों मुश्किल हैं…
शीशा देने वाला
जब भी मैं रोया करता, माँ कहती… ये लो शीशा, देख इसमें कैसी तो लगती है ! रोनी सूरत अपनी, अनदेखे ही शीशा मैं सोच-सोचकर
नियम
नियम सब हमने बनाए हैं ताकि हम बने रह सकें, लेकिन हो यह रहा है कि नियम तो बनते जा रहे हैं लेकिन हम टूटते
नियम
नियम इसलिये बने हैं ताकि हम बनें रह सकें…. लेकिन हो यह रहा है कि नियम तो बनते जा रहे हैं, लेकिन हम टूटते जा
मौत
ज़िंदगी की चादर पर रोज़ एक छेद हो जाता है… ताकि जीने वाला झाँक कर देख सके कि अब मौत उसके कितने क़रीब है…. पूज्य
प्रकृति
नई शिक्षा का प्रचार प्रसार जोर-शोर से हुआ; चिड़िया ने पानी में तैरने की कोशिश की, मछली ने पेड़ों पर चढ़ने की, मयूर के रंग-बिरंगे
ब्रम्हचर्य धर्म
आत्मा में रमना ही सच्चा ब्रम्हचर्य है । प्रवचन पर्व (आ.श्री विद्या सा.जी) 2) बेटे और पति के शरीरों पर हाथ रखने से जब एकसा
संयम धर्म
मन,वचन,काय का सदुपयोग ही संयम है । गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी 2) एक बड़ा ही शरारती बच्चा था। उसे दिन-भर खेलना , टी वी देखना
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