सुकून भी ढूँढना पड़े तो इससे बड़ा और कोई दर्द नहीं…!
यदि तुम में खुद को बदलने की हिम्मत नहीं,
तो तुम्हें भगवान या किस्मत को कोसने का हक भी नहीं…!!

धनजी भाई – भोपाल

विवाह विषयों के निमंत्रण के लिये नहीं, नियंत्रण के लिये।
विवाह दवा है, इसे भोजन मत बनाना।

आचार्य श्री विद्यासागर जी

दो प्रकार के लोग →
1. स्वस्थानिक – जो अपनी आत्मा में रहते हैं।
बड़ों से पूछो → कहाँ रहते हो ?
जबाब – ग्वालियर, आगरा, दिल्ली, मुंबई आदि।
बच्चों का जबाब – जी, अपने घर में।
2. परस्थानिक – जो पर के पीछे भागते हैं। यहाँ ऐसे लोग भी हैं जो जसलोक (मुम्बई का अस्पताल) से परलोक की यात्रा करते हैं, अंत धार्मिक नहीं।
*जस = यश।

ब्र. डॉ. नीलेश भैया

पापोदय में पाप करते हैं यह तो समझ में आता है पर पुण्योदय में भी पाप करते हैं इसका क्या कारण ?

सुभाष – महगांव

आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते थे… पुण्य के फल में यदि असावधानी बरती तो पाप करोगे/ पाप हो जाएगा।
जितना बड़ा पुण्योदय होगा उतनी ही ज्यादा सावधानी बरतनी पड़ेगी जैसे भगवान बनने वालों को।

मुनि श्री सौम्य सागर जी- 10 फरवरी (शंका-समाधान)

संसार की बनावट है कि अभाव और उपलब्धि साथ-साथ चलती हैं।
एक खरगोश किसान के खेत से रोज गाजर खाता था। बाड़ लगाने पर रोज आकर पूछता –> “गाजर है”।
किसान ने पकड़ लिया, दाँत तोड़ दिये।
गाजर बचने लगीं, हलवा बनने लगा।
अब खरगोश पूछता है –> “हलवा है”।

ब्र. (डॉ.) नीलेश भैया

हम सब उत्पाद हैं, चेतना + पदार्थ (शरीर) के।
चेतना, विचारपन देती है/ चाहना बढ़ाती है, गणित लगाती है, दुःख की निमित्त(कारण) है*।
पदार्थ… विस्तारपना जैसे शरीर को बनाये रखने/ बढ़ाने के लिये रोटी, कपड़ा, मकान; आवश्यक।

ब्र. डॉ. नीलेश भैया

* दृष्टिकोण बदल जाए तो सुख कारण भी।

क्या महिलाओं को नौकरी करनी चाहिए ?
(यदि इमरजेंसी हो तो) चाकरी को अधम कहा गया है। नौकरी में पराधीनता है जबकि सुख स्वाधीनता में ही है। जॉब में अनेकों संक्लेश होते हैं।
बच्चों के लिए पहली पाठशाला माँ है।
आप गवर्नर क्यों नहीं बनते जैसे माॅल का मालिक, ‘अरनर'(Earner) क्यों होना चाहते हो जैसे सेल्समैन !

मुनि श्री सौम्य सागर जी- 11 फरवरी

भगवान की मूर्ति के दर्शन पहले खुली आँखों से करें, उनके रूप को अपने अंतस् में भर लें। फिर आँख बंद करके उस रूप का आनंद लें।
वह रूप मन में टिकेगा तब जब आपके कान और मन बंद हों।

मुनि श्री सौम्य सागर जी- 10 फरवरी

थाली में जूठन छोड़ने से नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है।
अन्न को अन्य मत मानो।
अपनी भूख पहचानो तभी अपने को पहचान पाओगे।
किसी के पेट पर लात मारोगे तो तुम्हारा पेट ठीक कैसे रहेगा।

मुनि श्री सौम्य सागर जी- 11 फरवरी

अपेक्षा परावलम्बी, इच्छा स्वावलम्बी।
इच्छा में अपेक्षा का होना हानिकारक।
श्रद्धा में अपेक्षा/ इच्छा नहीं, इसलिये लाभकारी।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

परमात्मा बनने की विधि….
गुणवानों का गुणगान करने से खुद गुणवान बनेंगे तब धर्म जीवन में आएगा, धर्मात्मा हो जाएँगे। फिर पुण्यात्मा और उससे बन जाएँगे परमात्मा।
इसके लिए पहले साफ सफाई करनी होती है अंतरंग की फिर उसकी सुरक्षा के उपाय।
जितना बड़ा मेहमान आता है या जितना बड़ा बनना होता है, उतनी ज्यादा सफाई और सुरक्षा का इंतजाम करना पड़ता है।

मुनि श्री सौम्य सागर जी- 10 फरवरी

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