Category: पहला कदम

मोहादि पर नियंत्रण

देवदर्शन/ पूजादि, सत्संग, गुरु वचन, ज्ञान के साथ धर्म करने से मोहादि पर नियंत्रण करना सम्भव है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (ति.भा.- गाथा 43)

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धर्म / अधर्म

वस्तु का स्वभाव ही धर्म है वस्तु अनादि से है, सो धर्म भी अनादि से हुआ। लेकिन ये अधर्म कब और कहाँ से आ गया

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वेग / संवेग

वेग की तीव्रता/ आक्रोश = आवेग काम करने की ज्यादा उत्सुकता = उत्सेग मद सहित उत्सेग = उद्वेग वेग रहित अवस्था = निर्वेग निर्वेगी (चिंता/

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समाधि-मरण

शरीर छूटने पर व्रत छूट जाते हैं पर व्रती व्रत छोड़ता नहीं/ छोड़ना चाहता नहीं। इसे ही समाधि-मरण कहते हैं। वही संस्कार अगले भव में

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गुरु आज्ञा

मुनि श्री प्रवचनसागर जी को गुरु आज्ञा मिली… अमुक मुनिराज की वैयावृत्ति करने की। रास्ते में पागल कुत्ते ने काट लिया। इंजेक्शन लगवाने की आचार्य

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अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोग

जो संवर का आदर तथा निर्जरा की इच्छा करता है, वह आत्मरसिक अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोग को जानता/ उसके निकट रहता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तिथ्य भा.–

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शुद्धि

शुद्धि अनेक प्रकार की, सिर्फ भाव-शुद्धि से काम सिद्ध नहीं होगा। निमित्त, द्रव्य, कर्म, नौकर्म शुद्धि भी चाहिये। लेकिन ये सब शुद्ध हों और भाव-शुद्धि

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अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी

अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी का मतलब यह नहीं कि हर समय ज्ञान पाने में लगे रहें। ज्ञान को नायक कहा है। नायक सही दिशा में ले जाता

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चरमोत्तम – देही

चरम = अंतिम + देही = शरीर ( जैसै पांडव, गजकुमार आदि ) उत्तम → 63 शलाका पुरुष उनका भी अकाल मरण सम्भव है। चरम

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मौन-देशना

जबलपुर-प्रतिभास्थली की छात्राओं ने आचार्य श्री विद्यासागर जी के दर्शन के दौरान, एक छात्रा ने प्रश्न किया→ क्या हम आपके साथ सामायिक कर सकते हैं

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मंगल आशीष

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May 1, 2024

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