Category: पहला कदम

अरहंतों की क्षमता

जब भगवान के दानांतराय कर्म का क्षय पूरी तरह से हो जाता है, तो भी बहुत से जीवों को वे अपनी बात समझा क्यों नहीं

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तीर्थंकर का मुनि साक्षात्कार

तीर्थंकरों का मुनियों से साक्षात्कार नहीं होता । क्योंकि होने पर तीर्थंकर वंदना नहीं करेंगे तब धर्म की कुप्रभावना होगी । स्व. पं. रतनलाल बैनाडा

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नोकषाय

प्राय: छोटे को छोटा मानकर छोड़ देते हैं जैसे नोकषाय। 4 कषायों की चर्चा बहुत होती है। पर नोकषायों के कर्मफल भी बहुत कष्टप्रद होते

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क्षायिक-दान

सिद्धों में क्षायिक-दान कैसे घटित करेंगे ? सिद्धों को ध्यान/ अनुभूति में अपने पास लाकर अभय का अनुभव करके। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र-

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कर्मोदय का प्रभाव

कर्मोदय का प्रभाव व्यक्ति विशेष पर ही नहीं, आसपास के व्यक्तियों पर भी होता है। जैसे आदिनाथ भगवान के कर्मोदय से सौधर्म इंद आहार विधि

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पुष्पवृष्टि

क्या केवलियों पर पुष्पवृष्टि भोगांतराय कर्म के क्षय से होती है ? सामान्य केवली के कल्याणकों पर भी वृष्टि होती है, पर कुछ समय के

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ज्ञान / चारित्र

हिताहित का पूरा ज्ञान होने पर भी चारित्र अंगीकार क्यों नहीं करते ? योगेन्द्र चारित्र-मोहनी का उदय दो तीव्रता का → 1. तीव्र → जिसमें

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लक्ष्य

हमारे जीवन का लक्ष्य हल्का होने का होना चाहिये। कर्मों से हल्का कैसे ? नित्य हिसाब लगायें/Balance Sheet बनायें, कितने कर्म कटे/ कितने बंधे। अधिक-अधिक

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अतिशय

चौथे तथा पंचम काल के अतिशयों में क्या अंतर होता है ? चौथे काल के अतिशय सिद्धक्षेत्र बन जाते थे, पंचम काल के अतिशय क्षेत्र

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क्षायिक लाभ

अनंत गुणों का अनंतकाल के लिये लाभ को क्षायिक-लाभ कहते हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 2/5)

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मंगल आशीष

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