Category: पहला कदम

अचेतन का उत्थान

चेतन के उत्थान में अचेतन के उत्थान की महत्वपूर्ण भूमिका है। तभी तीर्थक्षेत्रों/ मन्दिरों के जीर्णोद्धार करवाये जाते हैं तथा नये बनाये जाते हैं। ऐलक

Read More »

गुप्ति

आचार्यों के लिये गुप्ति मूलगुण है। साधुओं के लिये ध्यान की सिद्धि में सहायक। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

Read More »

मोह

द्रव्य मोह – नामकर्म के निमित्त से। भाव मोह – नामकर्म के भोगने से। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

Read More »

समयप्रबद्ध

अनंत परमाणुओं की एक वर्गणा, अनंत वर्गणाओं का एक समयप्रबद्ध। यह सिद्धों का अनंतवाँ भाग तथा अभव्यों से अनंतगुणा होता है। प्रति समय, समयप्रबद्ध आत्मा

Read More »

मानस्तम्भ

मन्दिरों में मानस्तम्भ जरूरी नहीं। यदि हो तो मन्दिर के मुख्य द्वार से मानस्तम्भ की ऊँचाई की 1½ गुनी दूरी पर हो ताकि भगवान की

Read More »

परस्पर

“परस्परोपग्रहो जीवानाम्” इस सूत्र में प्राय: “उपग्रह” का अर्थ “उपकार” ही लिया जाता है पर इसमें “अपकार” भी ग्रहण करना चाहिये। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर

Read More »

प्रश्न / समाधान

समाधान से ज्यादा महत्वपूर्ण प्रश्न होता है। इससे संवेग-भाव बना रहता है जो मोक्षमार्ग में सहायक होता है। प्रश्न से ही तो गौतम गणधर का

Read More »

प्रायश्चित

मुनि श्री शांतिसागर जी, आचार्य श्री विद्यासागर जी से प्रायश्चित अकेले में नहीं लेते थे। उनकी सोच थी कि गलती जितने लोगों के सामने की

Read More »

अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग

केवलज्ञान में सब पदार्थ आ जाते हैं, इसलिये ज्ञान ही श्रेष्ठ है। ज्ञान के आश्रय से कलुषता/ कषाय कम करने वाला अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी होता है।

Read More »

दिव्यध्वनि

दिव्यध्वनि को अपने क्षयोपशम के अनुसार जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट समझते हैं। महत्वपूर्ण यह नहीं कि कितना समझे बल्कि यह है कि क्या समझ रहे हैं

Read More »

मंगल आशीष

Archives

Archives
Recent Comments

February 11, 2024

May 2024
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031