Category: पहला कदम

बंधन

प्रायः संसारी जीव आश्रित रहना चाहता है, बंधन स्वीकारता है, कर्म बंध करता है। शांतिपथप्रदर्शक पर, विडम्बना यह है कि बंधन में आनंद लेने लगता

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क्रियायें

प्रकार → 1. पाप क्रिया → सर्वथा हेय/ अशांति का कारण/ कर्म धारा रूप 2. पापानुबंधी-पुण्य क्रिया → मिश्र, मसाले जैसा पुण्य/ पाप, 3. पुण्यानुबंधी-पाप

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एकेंद्रिय

एक इंद्रिय जीवों के लिये भी → वीर्यांतराय + मतिज्ञानावरण के क्षयोपशम + शरीर नामकर्म तथा जाति नामकर्म के उदय लगते हैं। सब में प्रवृत्तियाँ

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गति / गत्यानुपूर्वी

जीव के वर्तमान को चलाता है गति नामकर्म। गत्यानुपूर्वी जीव को विग्रह गति में चलाता है। (लेकिन पर्याप्तक होने पर इसका उदय बंद हो जाता

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गुणस्थान / लेश्या

गुणस्थान… मोह की न्यूनता / अधिकता होने से भावों में बदलाव। लेश्या… कषाय + योग प्रवृत्ति में न्यूनता/ अधिकता से आत्मा का लेपन। गुणस्थानों के

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श्री षटखण्डागम

6 खंडों के नाम – जीवठान छुद्दाबंध बंध स्वामित्व विचय वेदना अनुयोग द्वार वर्गणाखंड महाबंध मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान – 9)

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इंद्रियाँ

द्रव्य-इंद्रियों की रचना मुख्यतः नामकर्म (अंगोपांग + शरीर नाम) के उदय से। भाव-इंद्रियों में ज्ञानावरणी कर्म के क्षयोपशम की मुख्य भूमिका। मतिज्ञानावरण + वीर्यांतराय कर्मों

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संस्कार

संस्कार दो प्रकार के… 1. पूर्व जन्मों के 2. वर्तमान के पहचानें कैसे ? यदि अपराध, सहजता/ स्वेच्छा से तो पूर्व के संस्कार। परवश/ संगति

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ज्ञान की परिणति

आत्मा, इंद्रियाँ तथा मन ज्ञान के साथ चल रहे हैं। ये सब ज्ञानात्मक परिणतियाँ हैं। सबसे ज्यादा परिणति स्पर्शन इंद्रिय से ही होती है क्योंकि

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पंच-परावर्तन

चक्रवर्ती भरत के 923 पुत्र तो अनादि से निगोद में ही रहे थे, उनके पंच-परावर्तन कैसे घटित होगा ? पंच-परावर्तन अनंत को दर्शाता है। उनके

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मंगल आशीष

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