Category: पहला कदम

प्रतिक्रमण

मुनियों के प्रतिक्रमण में आँसू क्यों निकल आते हैं ? प्रतिक्रमण मन, वचन, काय से करने को कहा है। आँसू निकलना काय से प्रतिक्रमण हुआ

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सम्यक्चारित्र

सम्यक्चारित्र का मतलब संसार के कारणभूत बाह्य और अंतरग क्रियाओं से निवृत्त होना है। अतः सम्यक्चारित्र तभी संभव होगा जब सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान का implementation

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सम्यक्चारित्र

सम्यग्दर्शन तो जीव जन्म के साथ लेकर आ सकता है पर सम्यक्चारित्र तो समझदार होने पर पुरुषार्थ के द्वारा ही आता है। आचार्य श्री विद्यासागर

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अनदेखे सच

अनदेखे सच… अष्टापद, पारस किसी के द्वारा देखे जाने का वर्णन नहीं मिलता। देवों के गले में अमृत झरता है, पर वे अमर तो नहीं

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निकट/दूर भव्य

क्या निकट-भव्य, दूर-भव्य हो सकता है ? नहीं, क्योंकि जिसको मोक्ष 7-8 भव में जाना निश्चित हो गया हो, उसे ही निकट-भव्य कहेंगे। तो निश्चित,

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कषाय

बिना मन वालों की कषायें कम होती हैं और सीमा में रहतीं हैं, स्थितिबंध कम पर संक्लेश हर समय, डरादि के कारण। मन वालों में

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रस-परित्याग

“परि” का प्रयोग “परिचय” आदि में होता है। लगता है… जाने पहचाने रसों के त्याग के लिये प्रयोग हुआ है। चिंतन

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बुद्ध

बुद्ध 2 प्रकार के – 1) प्रत्येक बुद्ध – जो स्वयं ज्ञान प्राप्त करते हैं। 2) बोधित बुद्ध – जो पर-उपदेश से प्राप्त करते हैं।

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परिहार-विशुद्धि

परिहार-विशुद्धि मुनिराजों के 6-7 गुणस्थान में ही क्यों ? आगे के गुणस्थानों में क्यों नहीं ?? क्योंकि वे हमेशा प्रवृत्ति में ही रहते हैं। मुनि

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धर्म

धर्म जो बहिरात्मा से अंतरात्मा बनाये। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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मंगल आशीष

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