Category: अगला-कदम

सासादन में मिथ्यात्व

पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व की व्युच्छत्ति  होने  पर भी  सासादन में मिथ्यात्व कैसे ? योगेन्द्र ज्ञान को अज्ञान बनाने में कषाय भी कारण है। मिथ्यात्व

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अगुरुलघु

1. सब जीवों में सामान्य गुण….जो उस द्रव्य के गुणों को बदलने नहीं देता, अपनी-अपनी पर्याय में ही परिणमन करता है। 2. नाम कर्म का

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धर्म-ध्यान

इसके 4 भेद और भी होते हैं (आज्ञा-विचयादि के अलावा) , पिंडस्थादि (पार्थिवी, आग्नेय, मारुती, वारुणी >>>तत्वरुपवती) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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दर्शन मोहनीय से अदर्शन

दर्शन मोहनीय के 3 भेदों में सम्यग्दर्शन के साथ सम्यक्-प्रकृति में परिषह/दोष भी। (क्षयोपशम) सम्यग्दृष्टि के चल, मल, अगाढ़ दोष होते हैं। चारित्रवान को भी

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स्कंध / स्पर्धक

स्कंध – सभी प्रकार के परमाणु पिण्ड स्पर्धक – कर्म की अनुभाग शक्त्ति बताने के लिये। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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आयुकर्म

आयुकर्म का सम्बंध काल से नहीं बल्कि कर्म के निषेकों से होता है। उदीरणा में निषेक ज्यादा खिरते हैं। 7वें गुणस्थान में मुनिराज की आयुकर्म

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तीर्थंकर प्रकृति बंध

तीर्थंकर प्रकृति बंध का प्रारम्भ – 4-7 गुणस्थानों में, बाद में 8वें गुणस्थान की प्रारम्भ अवस्था तक होता रहता है। यह प्रथमोपशम, द्वितीयोपशम, क्षयोपशम या

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पुद्गल / प्रदेश

एक परमाणु एक प्रदेश में रहेगा। दो परमाणु एक प्रदेश में भी रह सकते हैं यदि बद्ध हों/अवगाहित होकर। दो प्रदेशों में तीन परमाणु भी

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चल/अचल प्रदेश

अयोग केवली तथा सिद्ध भगवान के “अचल प्रदेश” होते हैं, हमारे “चल”(इस कारण शायद हमको सब घूमता दिखता है)। चल प्रदेशों में Activity होती है।

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अधर्म-द्रव्य

आचार्य अकलंकदेव – अधर्म-द्रव्य, लोक के आकार तथा स्थिति को बनाये रखने में निमित्त है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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मंगल आशीष

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