Category: वचनामृत – अन्य
अनेकांत
पाँचों इंद्रियों के विषय अलग-अलग हैं। आपस में कोई सम्बंध नहीं। आत्मा सबको बराबर महत्त्व देती है। इन्हीं से वह संसार के सारे ज्ञान प्राप्त
मद
आजकल हर व्यक्ति में डेढ़ अक्ल है। एक ख़ुद की, आधी पूरी दुनियाँ की अक्ल का जोड़। ब्र. भूरामल जी (आचार्य श्री विद्यासागर जी के
वैराग्य / तत्त्वज्ञान
वैराग्य से संसार छूटता है। तत्त्वज्ञान* से मोक्षमार्ग पर बने रहते हैं। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी * धर्म का ज्ञान
साधना
पार्किंसन रोग होने पर हाथ कंपने को रोकने के लिये कहते हैं –> “साधौ”। विचारों के चलायमानता को रोकने को साधना कहते हैं। मुनि श्री
महावीर भगवान
महावीर भगवान के निर्वाण दिवस की बधाई। ……………………. इंद्रिय नियंत्रण… राजसिक/ तामसिक भोजन से अपना व सामने वालों का भी नुकसान होता है। स्वयं का
अभिमान / मान / स्वाभिमान
मान चोट पहुँचाता है, मानी को चोट पहुँचती है। स्वाभिमान न चोट पहुँचाता है न उसे चोट पहुँचती है क्योंकि वह पद का सम्मान करता/चाहता
वीतरागता / संवेदनहीनता
क्या वीतरागता संवेदनहीनता नहीं है ? संवेदना बाह्य है। गृहस्थ भी बाह्य में रहते हैं, उन्हें संवेदनशील होना चाहिये। साधु अंतरंगी, उन्हें वीतरागी। मुनि श्री
आत्मा
आत्मा को समझाने की आवश्यकता नहीं, वह तो ही खुद समझदार है, आत्मा को समझना है। ऐसे ही भगवान/ गुरु को समझना है। निर्यापक मुनि
सुखी रहने के उपाय
सुखी रहने के उपाय –> दुखों को स्वीकारें; सुखों का प्रतिकार करें। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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