Category: वचनामृत – अन्य
समय
स्व-समय(आत्मा) में लीन रहने वालों का समय(काल) उनका अपना हो जाता है, समय पर मालकियत हो जाती है। आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (31 जुलाई)
अनुभूति
जियें ऐसे कि जीवत्व की अनुभूति हो ! मरें तो ऐसे कि अमरत्व की अनुभूति हो। आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी (30 जुलाई 2024)
मोक्ष मार्ग
जहाँ दिट्ठो वहाँ पिट्ठो, यही मोक्ष को चिट्ठो। जहाँ दृष्टि, वहाँ पीठ कर लो। आज तो हम एक कदम मोक्ष की ओर बढ़ा रहे हैं,
मन
उच्छृंखल घोड़े को साध दिया जाय तो बिना लगाम खींचे अपने घर को वापस आ जाता है। ऐसा ही मन है। क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
अहिंसा / विनय
अक्षर/ शब्दों को लिखकर काटने/ मिटाने में भाव-हिंसा तथा अंकों को काटने/ मिटाने में ज्ञान के प्रति अविनय है। मुनि श्री मंगल सागर जी
पुरुषार्थ
1. गृहस्थ बार-बार हानि होने पर भी धनोपार्जन का पुरुषार्थ करता रहता है। 2. साधु हीन पुरुषार्थ होते हुए भी परीषह (कठिनाइयों) जय करने में
भाग्य / पुरुषार्थ
भाग्य = पिछले साल का बीज। पुरुषार्थ = बीज बोना, फसल की देखभाल करना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
नींव में सोना
नींव में सोना डालने का औचित्य नहीं, चाहे नींव मंदिर की ही क्यों न हो। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
राजनीति / धर्म
राजनीति नीति पर आधारित, सत्य ना भी हो। धर्म सत्य पर ही आधारित। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
धन / धर्म
धन (ही) कमाने से जीवन का निधन है, धर्म कमाने से जीवन धन्य होता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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