Category: वचनामृत – अन्य
वैराग्य
वैराग्य भाव आये पर संसारियों के साथ रहने की मजबूरी हो तो संसारियों को पता मत लगने देना वरना वे रहना दुश्वार कर देंगे ।
प्रतिकार
प्रतिकार करना है तो सुख का करो, वरना सुविधाओं के आश्रित हो जाओगे । जिन्होंने किया, वे महान/ साधु/ भगवान बन गये जैसे राम/महावीर भगवान
सम्बोधन
कार्य की सिद्धि के लिये पहले सम्बोधन करना चाहिये, जैसे… “बेटा ! ये काम कर दो” । इससे सकारात्मकता भी आयेगी । मुनि श्री प्रणम्यसागर
शरीर
घोड़े के दो मालिक होते हैं – एक रईस*, दूसरा – सईस** । हम अपने शरीर रूपी घोड़े के कौन से मालिक हैं ? मुनि
गुण / अवगुण
जग प्रशंसा करे तो गुण, ख़ुद को बताना पड़े तो अवगुण । अवगुणीं तुम्हारे गुणों को स्वीकार नहीं कर पायेंगे; गुणीं पचा नहीं पायेंगे ।
भगवान भारत में ही
भगवान भारत में ही क्यों ? इस धर्म/संस्कृति की फसल के लिये ये ही वातावरण अनुकूल है । जैसे चाय के लिये आसाम, सेव के
विपरीतता / गुरुपूर्णमाँ
विपरीतता प्रकृति का नियम है । प्रतिकूल वातावरण में अनुकूल की साधना ही सच्ची साधना है । हीरा कोयले की खान में ही । शंख/गाय
डर
जिससे डरोगे, वही बनोगे । भगवान/गुरु/कानून सबमें लगा लेना । मुनि श्री सुधासागर जी
उपकार
उपकार करके यदि कह दिया तो वह व्यापार हो गया । जब सीता जी को वनवास दिया तब उनके मन में यह भाव भी नहीं
मार्ग / मंज़िल
गुरु/भगवान को पाकर अहोभाग्य अनेकों बार माना, फिर कल्याण क्यों नहीं हुआ ? मार्ग तो मिला पर मंज़िल नहीं, क्योंकि गुरु हमें पाकर धन्य नहीं
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