Category: वचनामृत – अन्य

अभिनय

ईश्वरचंद विद्यासागर एक नाटक देख रहे थे। कलाकार स्टेज पर लड़की के साथ अभद्रता का अभिनय निभा रहा था। विद्यासागर से देखा नहीं गया। उन्होंने

Read More »

व्यवहार

क्या करें, रिश्तेदारी निभाने में धर्मध्यान में बहुत व्यवधान होता है !…..अंजू मैं अकेले में आहार 1/2 घंटे में ले लेती हूँ। संघ के साथ

Read More »

कर्म / आत्मा

कर्म और आत्मा में शक्तिशाली कौन ? यदि एक व्यक्ति की शक्ति दस व्यक्तियों से ज्यादा हो और दूसरे व्यक्ति की शक्ति तो बहुत कम

Read More »

नारियल

नारियल क्यों चढ़ाते हैं ? आचार्य श्री विद्यासागर जी –> नारियल सिर का प्रतीक है। घमंड के समर्पण का प्रतीक। महिलायें नारियल क्यों नहीं तोड़ती

Read More »

सुख / दु:ख

सुख भी पीड़ा/ दुःख/ तृष्णा देता है। लगातार मिलने पर Bore होने लगते हैं, न मिलने पर दुःखी। सो सुख दुःख बराबर हुए न !

Read More »

भेंटादि

दान/ भेंटादि में ‘एक’ अधिक (जैसे 11,101) क्यों देते हैं ? आचार्य श्री विद्यासागर जी → तब यह संख्या अविभाज्य हो जाती है। ‘एक’ का

Read More »

सूतक

जन्म/ मरण में अच्छा/ बुरा लगने से सूतक लगता है। अच्छा/ बुरा लगने से सुख/ दु:ख होता है। सुखी/ दु:खी होने से शरीर में रिसाव

Read More »

शांति

शांति के लिये –> 1. अभिलाषा छोड़नी होगी। 2. समता धारण। 3. व्यापकता। 4. निस्वार्थता। 5. पारमार्थिक शांति के लिये सर्वलोकाभिलाषा का त्याग। क्षु. श्री

Read More »

अभिमान

“मैं हूँ” ऐसा सोचने/ मानने में हानि नहीं। “मैं कुछ हूँ” अभिमान दर्शाता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Read More »

मौन

बाह्य मौन —-> मौन रखना; अंतरंग मौन –> मौन रहना (बोलने के भाव ही न आना)। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Read More »

मंगल आशीष

Archives

Archives
Recent Comments

June 5, 2024

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930