Category: वचनामृत – अन्य
सुख / दु:ख
सुख भी पीड़ा/ दुःख/ तृष्णा देता है। लगातार मिलने पर Bore होने लगते हैं, न मिलने पर दुःखी। सो सुख दुःख बराबर हुए न !
भेंटादि
दान/ भेंटादि में ‘एक’ अधिक (जैसे 11,101) क्यों देते हैं ? आचार्य श्री विद्यासागर जी → तब यह संख्या अविभाज्य हो जाती है। ‘एक’ का
सूतक
जन्म/ मरण में अच्छा/ बुरा लगने से सूतक लगता है। अच्छा/ बुरा लगने से सुख/ दु:ख होता है। सुखी/ दु:खी होने से शरीर में रिसाव
शांति
शांति के लिये –> 1. अभिलाषा छोड़नी होगी। 2. समता धारण। 3. व्यापकता। 4. निस्वार्थता। 5. पारमार्थिक शांति के लिये सर्वलोकाभिलाषा का त्याग। क्षु. श्री
अभिमान
“मैं हूँ” ऐसा सोचने/ मानने में हानि नहीं। “मैं कुछ हूँ” अभिमान दर्शाता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मौन
बाह्य मौन —-> मौन रखना; अंतरंग मौन –> मौन रहना (बोलने के भाव ही न आना)। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सपने
भविष्य बताने वाले सपने तो प्राय: महापुरुषों को ही आते हैं। साधारण लोगों के सपने तो मन के भावों/ स्वभाव पर ही आधारित होते हैं।
चरण / साधु
भगवान के चरण-चिह्न स्त्रियाँ छू सकती हैं, साधु के चरण क्यों नहीं ? दादा जी का बहू लिहाज करतीं हैं, उनके फोटो का क्यों नहीं
प्रवचन
प्रवचन सिर के ऊपर से निकले तो वक्ता की कमी, हृदय के ऊपर से निकले तो श्रोता की कमी। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
Tension
अपने सारे Tensions गुरु/ भगवान को Transfer कर दें। जैसे बचपन में माँ को Transfer करके सो जाते थे, वह जागकर ध्यान रखतीं थीं। पर
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