Category: वचनामृत – अन्य
समता भाव
कहावत… पानी पीने के बाद जात नहीं पूछी जाती। ताकि समता भाव रहे/ पछतावा न हो। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
विश्वास / श्रद्धा
भटके हुए पथिक को श्रद्धा साधु पर ही होगी। वही रास्ता किसी गुंडे ने बताया हो पर उस पर नहीं होगी। रास्ते पर आगे चल
अंतर्ध्वनि/ धर्म
जो अंतर्ध्वनि/ धर्म के अनुसार कियायें करते हैं जैसे परोपकार/ दया, उनकी आत्मा शांत/ आनंदित रहती है; विपरीत कियायें करने वालों की अशांत, तभी तो
मर्जी
मर्जी उन्हीं की जिन्हें मर्ज़ होता है (वे ही ज़िद करते हैं/ अड़ियल होते हैं)। भगवान की मर्जी ही तेरी अर्ज़ी। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर
अर्थ
अर्थ के खर्च होने की चर्चा से भी मन व्यथित हो जाता है। कैसे बचें ? परमार्थ से जुड़कर। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
पुण्य / धर्म
रावण का पुण्य ज्यादा था, धर्म कम। राम/ लक्ष्मण का पुण्य कम था, धर्म ज्यादा, इसलिये विजयी हुए। क्षु. श्री विवेकानन्दसागर जी
अभिनय
ईश्वरचंद विद्यासागर एक नाटक देख रहे थे। कलाकार स्टेज पर लड़की के साथ अभद्रता का अभिनय निभा रहा था। विद्यासागर से देखा नहीं गया। उन्होंने
व्यवहार
क्या करें, रिश्तेदारी निभाने में धर्मध्यान में बहुत व्यवधान होता है !…..अंजू मैं अकेले में आहार 1/2 घंटे में ले लेती हूँ। संघ के साथ
कर्म / आत्मा
कर्म और आत्मा में शक्तिशाली कौन ? यदि एक व्यक्ति की शक्ति दस व्यक्तियों से ज्यादा हो और दूसरे व्यक्ति की शक्ति तो बहुत कम
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