Category: वचनामृत – मुनि श्री क्षमासागर
मान/अपमान
September 16, 2015
अपमान सहना कठिन है, पर मान को सहना उससे भी कठिन है । गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी
आत्मीयता
June 11, 2015
आत्मीयता आत्मानुशासन की पृष्ठभूमि में ही फलित होती है। गुरूवर मुनि श्री क्षमासागर जी
क्रोध
June 26, 2014
किसी को कुँऐ में गिरता देख, तुम भी कुँऐ में गिरते हो ? यदि नहीं, तो किसी को क्रोध करते देखकर क्रोध क्यों करते हो
कर्म
May 31, 2014
कर्म उनको पैदा करने वाले से बड़े नहीं होते । जो पैदा करना जानता है वह उन्हें समाप्त भी कर सकता है । गुरुवर मुनि
संसार भ्रमण
May 12, 2014
जो बच्चे कक्षा में बार बार फेल होते हैं, उन्हें उसी कक्षा में बार बार रहना परता है । यदि हम कर्मोदय में बार बार
सुख
May 4, 2014
थोड़े से, क्षणिक सांसारिक सुख के बदले में अनंत/शास्वत आत्मिक सुख को छोड़े/भूले हुये हैं । ऐसा ही है जैसे मंज़िल के रास्ते में थोड़ी
रुकना
April 18, 2014
रुकते तो मेले में हैं, संसार के मेले में गति कहाँ ? इसीलिये कहा है – रुकना मृत्यु है, मुक्ति से दूर होना है ।
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