Category: वचनामृत – अन्य

अहिंसा / विनय

अक्षर/ शब्दों को लिखकर काटने/ मिटाने में भाव-हिंसा तथा अंकों को काटने/ मिटाने में ज्ञान के प्रति अविनय है। मुनि श्री मंगल सागर जी

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पुरुषार्थ

1. गृहस्थ बार-बार हानि होने पर भी धनोपार्जन का पुरुषार्थ करता रहता है। 2. साधु हीन पुरुषार्थ होते हुए भी परीषह (कठिनाइयों) जय करने में

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भाग्य / पुरुषार्थ

भाग्य = पिछले साल का बीज। पुरुषार्थ = बीज बोना, फसल की देखभाल करना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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नींव में सोना

नींव में सोना डालने का औचित्य नहीं, चाहे नींव मंदिर की ही क्यों न हो। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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राजनीति / धर्म

राजनीति नीति पर आधारित, सत्य ना भी हो। धर्म सत्य पर ही आधारित। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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धन / धर्म

धन (ही) कमाने से जीवन का निधन है, धर्म कमाने से जीवन धन्य होता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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अभ्यास

विषकन्याओं के प्रभाव से बचाने के लिये राजाओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में विष दिया जाता था, चाणक्य भी चंद्रगुप्त को विष दिलवाते थे। हमको भी

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वचन

वचन 2 प्रकार – 1. शिष्ट प्रयोग 2. दुष्ट प्रयोग कुल 12 प्रकार के, इनमें 11 दुष्ट प्रयोग, जैसे अव्याख्यान (टोकना), कलह। शिष्ट प्रयोग –

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पर्याप्त

संसार में प्राप्त को पर्याप्त मानने को कहा, तो परमार्थ में ? दोनों में एक ही सिद्धांत… अपनी-अपनी क्षमतानुसार, आकुलता रहित, पूर्ण पुरुषार्थ। दोनों ही

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समता भाव

कहावत… पानी पीने के बाद जात नहीं पूछी जाती। ताकि समता भाव रहे/ पछतावा न हो। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मंगल आशीष

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