Category: वचनामृत – अन्य

धर्म

धर्म को Washing Powder ना मानें कि पहले प्रयोग करें फिर विश्वास करें, बल्कि बीमा जैसा मानना – “जीवन के साथ भी, जीवन के बाद

Read More »

अभ्यास

व्यवसाय को नौकरी से अच्छा इसलिये कहा… क्योंकि यह Running है (मरने के बाद भी बच्चों को मिलेगा) । ज्ञान, तप, नियम ऐसे ही बेहतर

Read More »

भाग्य / पुरुषार्थ

भाग्य बीज है, पुरुषार्थ बोना । उचित फसल (फल) लेने के लिये दोनों आवश्यक हैं । मुनि श्री सुधासागर जी

Read More »

संस्कृति

विकृति को परिष्कृत करना संस्कृति है, जैसे पत्थर से विकृति निकालने से वह भगवान बन जाता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Read More »

धर्म

जो धर्म को धारण करता है, वह उदाहरण बन जाता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Read More »

आस्था / भावना

आस्था अच्छी ही होती है, भावना अच्छी/बुरी दोनों । आस्था में भावना होती है, भावना में आस्था ज़रूरी नहीं । आस्था भावना का परिष्कृत रूप

Read More »

सच्ची आत्मीयता

सच्चे भक्त को गुरु/भगवान से कुछ नहीं चाहिये, उसे तो गुरु/भगवान चाहिये । सच्चे इंसान/मित्र की भी अपने प्रियजनों के प्रति ऐसी ही भावना होती

Read More »

बात मानना/करना

जब सब अपनी अपनी ही मानते और करते रहते हैं फिर भी खुश क्यों नहीं रहते ? इसीलिये क्योंकि वे अपने मन की ही करना चाहते

Read More »

भाव प्रधानता

भाव प्रधानता का मतलब यह नहीं कि भावों से कार्य की पूर्णता कर लें, क्रिया की जरूरत ही नहीं, बल्कि यह कि… हर क्रिया भावपूर्ण

Read More »

स्वाभिमान / अभिमान

स्वाभिमान से विनम्रता बढ़ती है, अभिमान में घटती है । स्वाभिमान में दोनों हाथ पीछे से आगे लाना है (पीछे वालों को साथ लेकर चलना),

Read More »

मंगल आशीष

Archives

Archives
Recent Comments

June 26, 2019

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930