Category: अगला-कदम
मूर्तिक / अमूर्तिक
संसारी, पुद्गलों पर आधारित जैसे शरीर, श्वासोच्छवास, इसलिये मूर्तिक; “पर” से बाधित, सो व्यवहार। सिद्ध भगवान में यह सब नहीं, सो निश्चय। मुनि श्री प्रणम्यसागर
षटगुणी हानि/ वृद्धि
समझ में आना कठिन है। जिनवाणी/आगम पर विश्वास करके बस इतना समझें – लगातार…अनंत/असंख्यात/संख्यात हानि/वृद्धि, व्यय/उत्पाद। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
शब्द / अर्थ / भाव
भाव प्रत्यय की ओर यात्रा तब होती है जब हमारा अर्थ प्रत्यय मज़बूत होता है। और अर्थ प्रत्यय यदि मज़बूत है तो निश्चित है कि
सोलहकारण भावना
सोलहकारण भावना की हर भावना अपने आप में परिपूर्ण है। विनय-संपन्नता भी स्वतंत्र कारण है (तीर्थंकर बंध प्रकृति के लिये)। श्री धवला जी – मुनि
उत्पाद / व्यय
उत्पाद और व्यय में काल भेद कथंचित है जैसे स्वर्ण से हार बनते समय/ स्थूल रूप से/ व्यंजन पर्याय में, पर अर्थ पर्याय में नहीं
प्रमाद
प्रमाद के भेद… 5 = …विकथा, कषाय, इन्द्रिय प्रवृत्ति, निद्रा, स्नेह 15 =………4 +…4 +..5.+………….1+..1 37500 = 25 x 25 x 6(5+मन) x 5 x
अनुजीवी-गुण
आत्मा के अनुजीवी-गुण – आत्मा में ही/ उसमें ही जीवित रहने वाले हैं। आत्मा का अस्तित्व उनसे ही जाना जाता है/ अनात्मा से फर्क इन्ही
मिथ्यात्व
दो प्रकार का मिथ्यात्व- 1) नैसर्गिक – स्वभाविक रूप से,कर्मोदय से, अगृहीत। 1 से 5 इन्द्रिय जीवों में। 2) अधिगम – उपदेश से, संज्ञी जीवों
अदर्शन-परिषह
दर्शन-मोहनी के उदय से, अदर्शन-परिषह होता है, मिथ्यात्व से नहीं। शास्त्रों में – पढ़े के अनिर्णय से क्योंकि अनुभव/बुद्धि से परे है – आत्मा पकड़
सम्यग्दर्शन
सम्यग्दर्शन जब भी प्रकट होगा तब प्रशम आदि चारों गुणों से होगा, आत्मचिंतन से नहीं, 7 तत्त्वों पर विश्वास से होगा। वीतराग-सम्यग्दर्शन आत्मा को आधार
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