Category: अगला-कदम
भगवान का शरीर
1. अंतराय समाप्त सो अनंतवीर्य, इसलिये नामकर्म वर्गणायें लेने में लाभांतराय नहीं । 2. शरीर परमौदारिक (शुक्लध्यान से 12 गुणस्थान में शरीर शुद्ध) सो… कवलाहार
उपयोग
1. अशुभोपयोग में यदि आयुबंध हुआ तो कुमानुष, देव भी बने तो भवनत्रिक । पापबंध तो होगा ही । 2. शुभोपयोग में सब शुभ करने
21.1.21
इक्कीस = इक ईस पहला ईस = अरिहंत दूसरा ईश = सिद्ध दोनों के बीच “1”, मैं अकेला, ईश्वरीय गुणों/ शक्तियों से रक्षित । चिंतन
एकेंद्रिय के कषाय
1. एकेंद्रिय जीवों के मिथ्यात्व होने से अनंतानुबंधी (+ तीनों) कषायें होती हैं । 2. निगोदियाओं के इस कषाय के कारण ही बार बार निगोदिया
कर्म
क्षय तो सिर्फ 7 कर्मों का किया जाता है । 8वें आयु कर्म का तो संरक्षण किया जाता है । आचार्य श्री विद्यासागर जी
द्रव्यों का चिंतन
द्रव्यों का उपादेय – जीवास्तिकाय, बाकी सब ज्ञेय । अज्ञानी की दृष्टि पुद्गल पर, थोड़ा ज्ञान होने पर जीवद्रव्य पर, ज्ञानी होने पर जीवास्तिकाय का
नोकर्म
शरीर को नोकर्म कहते हैं, नोकर्म, कर्म की तरह राग-द्वेष में कारण हैं । शरीर-नामकर्म, 8 कर्मों में ही आते हैं । पं.रतनलाल बैनाड़ा जी
गृहीत-मिथ्यात्व
गृहीत-मिथ्यात्व सिर्फ भरत/ऐरावत क्षेत्रों के मनुष्यों के ही और हुंडावसर्पिणी में ही होता है । मुनि श्री सुधासागर जी
अनंतानुबंधी
दूसरे का नुकसान करने के लिये, अपना नुकसान सहने को तैयार । जैसे मैं मरूँ या ज़ीऊँ, दुश्मन को मिटाकर रहूँगा । मुनि श्री सुधासागर
नामकर्म
शरीर के निर्माण में नामकर्म-वर्गणायें खुद शरीर नहीं बनातीं, वे शरीर निर्माण योग्य के योग्य वर्गणाओं को आकर्षित करतीं हैं, तब उनसे शरीर का निर्माण
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