Category: अगला-कदम
प्रत्येक / साधारण
जिस नामकर्म से ऐसा शरीर मिलता है जिसे एक ही जीव भोगे, उसे प्रत्येक शरीर कहते हैं । साधारण शरीर को अनेक जीव भोगते हैं,
सामायिक
1. अभ्यास रूप – दूसरी प्रतिमा तक, दो बार 2. सामायिक प्रतिमा – तीसरी प्रतिमा, तीन बार 3. सामायिक आवश्यक – मुनियों के, तीन बार
अरहंत में दोष
13वें गुणस्थान में कर्म बांध नहीं रहे, पर बंध रहे हैं, जैसे तेल लगे शरीर पर धूल जम रही हो। 14वें गुणस्थान में बंध तो
परिणमन
धर्मद्रव्य में परिणमन, स्वयं के स्वभावानुसार तथा दूसरे द्रव्यों की गति से भी समझना चाहिए । मुनि श्री सुधासागर जी ऐसे ही केवलज्ञान में भी
व्रत में पुण्याश्रव/संवर
अहिंसा रूप प्रवृत्ति से पुण्याश्रव और हिंसा की निवृत्ति से संवर । ज्ञानशाला
वेदनीय स्थिति
वेदनीय की जघन्य स्थिति 12 मुहूर्त – तत्वार्थ सूत्र – 8/18 तो 13वें गुणस्थान में 1 समय कैसे ? 12 मुहूर्त साम्प्राय-आश्रव की अपेक्षा कहा
अनिंदा व्रत
निंदा ना करने से सम्यग्दर्शन के 4 गुण प्रकट हो जाते हैं – 1. निर्विचिकित्सा 2. स्थितिकरण – मोक्षमार्गी की सुरक्षा 3. वात्सल्य 4. उपगूहन
सम्यग्दृष्टि
सम्यग्दृष्टि की दो अलोकिक शक्तियाँ – 1. भेदविज्ञान जो उन्हें संभाल कर रखता है, 2. वैराग्य उन्हें सही दिशा देता है । मुनि श्री प्रमाणसागर
कृतकृत वेदन
यदि कृतकृत वेदन ने नरक आयु बंध कर लिया हो तो वह क्षयो. सम्यग्दर्शन लेकर नरक जायेगा, और वहाँ अपर्याप्तक अवस्था में ही क्षायिक सम्यग्दर्शन
आर्त/रौद्र ध्यान
ज्ञान की एकाग्रता को ध्यान कहते हैं । हमारा ज्ञान क्षयोपशमिक है । इसलिये ये “ध्यान” क्षयोपशमिक भाव हुये । पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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