Category: वचनामृत – अन्य
धर्म
धर्म संसार की चकाचौंध से दूर तो नहीं कर सकता। पर धर्मरूपी (धूप का) चश्मा लगाने से आँखें खराब नहीं होंगी। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर
धर्मध्यान
गृहस्थ हर समय धर्मध्यान करे तो गृहस्थी नष्ट (जैसे साधु की)। धर्मध्यान न करे तो गृहस्थी भ्रष्ट। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
पुण्य / पाप
हिंसा/ झूठादि पाप हैं तो अहिंसा/ सत्यादि पुण्य क्यों नहीं ? अहिंसादि व्रत हैं जो पुण्य से बहुत बड़े/ ऊपर हैं। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
आलस्य
आलस्य (प्रमाद) भीति तथा प्रीति से ही कम होता है। भीति – आलसी को बोल दो साँप आ गया, तब आलस्य रहेगा ! प्रीति –
ऊँचाई
ऊँचाई पाने के लिये गहराई में जाना जरूरी है, तो गहराई कैसे पायें ? बीज अपने आपको मिटा कर ही गहराई (जड़) तथा ऊँचाई प्राप्त
सुधार
अशुभ निमित्तों से भावनाओं को खराब होने मत दो। ऐसे Object को देखते ही सुधार प्रक्रिया शुरु कर दो। जैसे युवा वेश्या का शव दिख
लोभ
लोभ को पाप का बाप क्यों कहा ? क्योंकि लोभ के लिये अपमान को पी जाते हैं, लोभ से ही मायाचारी आती है, लोभ असफल
मन
मन कोमल होता है सो आकार ले लेता गर्म लोहे जैसा, झुक जाता है तूफानों में, घुल जाता अपनों में/ अपने में। मुनि श्री प्रणम्यसागर
भिखारी
भिखारी वह जो इच्छा रखता हो/ जिसकी इच्छा पूरी न हुई हो। आदर्श भिखारी…. शांति की इच्छा रखने वाला, शांति मिल जाने पर इस इच्छा
मजबूरी / पुरुषार्थ
मजबूरी में Accept भी करना होता है। Adjust करने के लिए पुरुषार्थ ही। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
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