Category: वचनामृत – अन्य

दूरदर्शिता

इस भव की/ Short Term चिंता करने वाला पैसे के पीछे भागता है, भविष्य के भवों/ Long Term की चिंता करने वाला पैसे से दूर

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सार्वजनिकता

आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते हैं… “जो काम पत्र से हो जाय उसके लिये पत्रिका का सहारा क्यों ?” मुनि श्री संधानसागर जी

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अनेकांत

अनेकांत = सबका स्वागत/ स्वीकार (अपेक्षा सहित) मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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धर्म / पुण्य

पुण्य करने वालों के जीवन में धर्म हो भी या ना भी हो, परन्तु धर्म करने वाले को पुण्य मिलेगा ही। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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कर्म फल

लाठी से सिर फूटता है, पर (सिर्फ) लाठी कभी सिर फोड़ सकती नहीं। दुःखी कर्मों से होते हैं, पर कर्म दुःखी कर सकते नहीं। उनके

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गुरु दर्शन

गुरु सिर्फ दर्शन (देखने) की चीज़ नहीं, उनके दर्शन आत्मदर्शन करने में निमित्त हैं। जिन लोगों से धर्म की प्रभावना होती है (या धार्मिक आयोजनों

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जीवन

जीवन एक संघर्ष है, सो जब तक जीवन है संघर्ष करते रहना है। (हारना/ रोना क्यों!) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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देव-दर्शन

देव-दर्शन का मुख्य उद्देश्य ? प्रसन्नता प्राप्त करना…. 1. भगवान सब अभावों में भी प्रसन्न रहते हैं। भगवान की दृष्टि अपने पर रहती है। हम

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मोबाइल से पूजादि

मोबाइल से पूजादि कर सकते हैं यदि उसे जिनवाणी का Digital रूप मानकर विनय करें तो। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मंगल आशीष

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