Category: वचनामृत – अन्य
उपकार
“दु:खीजनों को, तज क्यों जाऊँ मोक्ष, मैं सोचता हूँ।” जैसे माँ सबको खिलाकर खाती है, खिलाकर तृप्त हो जाती है। पर माँ तो अपने कुछ
अंतिम सीख
ऐसे मरीज़ों को क्या सीख दें जिनका अंत निश्चित/ करीब हो ? डॉ. पी. एन. जैन ऐसी बीमारियाँ/ स्थिति आने का मतलब है …उनका पुण्य
जन्म/मरण के परे
मोटी सी किताब में यदि बीच में एक ही पन्ना हो, पहले तथा बाद के सारे पन्ने फटे हों तो ज़िज्ञासा तो होगी न !
समझदार
समझदार वह, जिसकी आँखें सामने वालों की बंद होती आँखें देखकर खुल जायें। मुनि श्री विशालसागर जी
सरलता
सरल रेखा दिखती आसान है पर खींचने में बहुत सावधानी/ यत्नाचार चाहिये। आचार्य श्री विद्यासागर जी
मान
मान को प्राय: हम बो* देते हैं, फिर मान की फसल लहराने लगती है। साधुजन उसे बौना कर देते हैं तब वह न वर्तमान में
आसन
ध्यान/ सामायिक में आसन बदलने में दोष नहीं, हाँ नम्बर ज़रूर कम हो जायेंगे। मुनि श्री सुधासागर जी
समस्या
कंकड़ को आँख के बहुत करीब ले आओ तो पहाड़ सा दिखेगा।पहाड़ को दूर से देखो तो कंकड़। समस्याओं के साथ भी ऐसा ही होता
बुद्धिमत्ता
राजा ने भूमि-दान में ब्राम्हणों को बहुत ज्यादा-ज्यादा भूमि दी क्योंकि वे विद्वान होते हैं, अन्य जाति वालों को कम। एक लुहार ने राजा से
भूलन-बेल
छत्तीसगढ़ के जंगलों में एक वैद्य रास्ता भूल गये। गाँव वालों से पूछा तो उन्होंने कारण बताया… “भूलन-बेल छुआ गयी होगी”। हम सब भी तो
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