Category: वचनामृत – अन्य
सरलता
सरल रेखा दिखती आसान है पर खींचने में बहुत सावधानी/ यत्नाचार चाहिये। आचार्य श्री विद्यासागर जी
मान
मान को प्राय: हम बो* देते हैं, फिर मान की फसल लहराने लगती है। साधुजन उसे बौना कर देते हैं तब वह न वर्तमान में
आसन
ध्यान/ सामायिक में आसन बदलने में दोष नहीं, हाँ नम्बर ज़रूर कम हो जायेंगे। मुनि श्री सुधासागर जी
समस्या
कंकड़ को आँख के बहुत करीब ले आओ तो पहाड़ सा दिखेगा।पहाड़ को दूर से देखो तो कंकड़। समस्याओं के साथ भी ऐसा ही होता
बुद्धिमत्ता
राजा ने भूमि-दान में ब्राम्हणों को बहुत ज्यादा-ज्यादा भूमि दी क्योंकि वे विद्वान होते हैं, अन्य जाति वालों को कम। एक लुहार ने राजा से
भूलन-बेल
छत्तीसगढ़ के जंगलों में एक वैद्य रास्ता भूल गये। गाँव वालों से पूछा तो उन्होंने कारण बताया… “भूलन-बेल छुआ गयी होगी”। हम सब भी तो
दृष्टिकोण
सागर से कहा — देखो ! ये सूरज कितना दुष्ट है, तुमको जलाकर तुम्हारा पानी हड़प लेता है। सागर — नहीं वह मुझ पर और
अहंकार
बादलों से चट्टानों ने शिकायत की… चारों ओर तुम हरियाली कर देते हो, मुझ पर एक घास का तिनका भी नहीं उगाते ! बादल… इसमें
शांति
बिना शांत हुए दूध की परिणति नहीं बदलती*, आत्मा की कैसे बदल सकती है ! शांति पाने का उपाय – धर्म/वीतरागता। मुनि श्री महासागर जी
जीवन-यात्रा
जीवन-यात्रा को सुखद वैसी ही बनायें जैसे सड़क-यात्रा को बनाते हैं- 1. भीड़ भरे शहरों से बचने, Bypass का प्रयोग 2. Bump आने पर Speed
Recent Comments