Category: वचनामृत – अन्य
मार्ग
मार्ग – दो 1. साधना – दृढ़ इच्छा वालों के लिये, कुछ लोग ही कर पाते हैं। अपने भुजबल से नदी पार करना। 2. आराधना
अनुरूप चाहना/बनाना
अनुरूप चाहने में बुराई नहीं पर हरेक को/ हर घटना को अपने अनुरूप बनाना, गलत सोच/ दु:ख का कारण है। हर व्यक्ति अपने-अपने स्वभाव से
दिव्य-दृष्टि
द्रोणगिर में हम 4-5 बहनों के आचार्य श्री विद्यासागर जी के प्रथम दर्शन के समय, मैने आ. श्री से कुछ व्रत/नियम के लिये प्रार्थना की।
गृहस्थ / साधु
तकलीफें बहुत, सो रहना नहीं; इस युग में मंज़िल (मोक्ष) मिलना नहीं। आचार्य श्री विद्यासागर जी – “अब और नहीं, छोर चाहता हूँ। घोर नहीं,
ऊब
Routine काम करते-करते उनको ऊब नहीं आती जो अपने काम में डूब जाते हैं। डूब कर काम करने से नये-नये उत्साह का संचार होता है/नये-नये
निंदा
जब निंदा करना ग़लत है, तो स्वयं की निंदा करने को क्यों कहा ? ताकि मद न आये, साथ-साथ अपनी प्रशंसा पर भी रोक ज़रूरी;
कंजूस / मितव्ययी
कंजूस अनुपयोगी, फिजूलखर्ची दुरुपयोगी, मितव्ययी सदुपयोगी। उदारता तब आयेगी, जब आपकी आसक्त्ति कम होगी। आसक्त्ति कम तब होगी, जब आप सम्पत्ति/ जीवन की नश्वरता को
उत्तेजना
क्रोध, मान, माया, लोभ तथा काम-वासना की भी उत्तेजना होतीं हैं। उत्तेजना = कषाय आदि का तीव्र रूप, जिसमें कुछ भी करने को तैयार, मरने-मारने
कृतज्ञ्नी
सूअर नीचे गिरे फल ही नहीं खाता उस पेड़ की जड़ भी खा जाता है और ऊपर सिर उठाकर देखता भी नहीं है, गर्दन ही
भोजन
साधु और शेर भोजन करके शांत, गृहस्थ और हाथी को जितना मिष्ठान/माल उतना उदंड। डॉक्टर भी मोटापा कम कराने के लिये मीठा बंद कराते हैं।
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