Category: वचनामृत – अन्य

मर्यादा

जब कोई मर्यादा (औकात) से ज्यादा बातें करने लगे/परछायीं कद से ज्यादा बड़ी हो जाये तब जान लो – सूरज ड़ूबने वाला है। मुनि श्री

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धन / पाप / दान

धन तो सबने मिलकर भोगा, समाप्त कर लिया। बचा क्या ? धन कमाने में कमाया पाप, यह हमें अकेले ही भोगना होगा। इसका कुछ अंशों

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मलद्वार

नौ मलद्वारों में से, 2 One way हैं, 2 पर Natural Filters लगे हैं(आँखें), बाकी 5 Direct Highway (मुंह, नाक*, कान) हैं, इसलिये इन 5

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दु:ख

अपने और अपनों के दु:ख क्यों ? मोह अज्ञान से। कैसे ? ख़ुद और सबको शरीर माना, आत्मा को नहीं। बचने का उपाय ? वैराग्य

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अच्छा / बुरा

अच्छा वह जो बुराई छोड़ने के प्रयास में लगा है। अच्छा बनने के लिये पहले बुरों/बुराइयों से दूर रहना होगा। साफ कपड़े वाला गंदे कपड़ों

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विवेक

Call Centre में सामने वाली Party कैसा भी व्यवहार करे, Call Centre वाले पूरी नम्रता/शांति से व्यवहार करते रहते हैं। कारण ? उन्हें मालुम है

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पाप का प्रक्षालन

कलकत्ता का बेलगछिया का भव्य जैन मंदिर 26-27 बीघा के उपवन के बीच, शहर के मध्य स्थित है। बनवाने वाले सेठ हुलासीराम बड़े अय्याश थे।

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आराधना

आराधना क्यों ? मन और गृह शांति के लिये । तो शांति मिली क्यों नहीं ? क्योंकि अभी तक आराधना के उद्देश्य रहे – 1.

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जाति

प्रकृति ने तो मनुष्य की एक ही जाति बनायी है – “मनुष्य” (जैसे एकेन्द्रिय…पंचेन्द्रिय जीव) । मनुष्य ने उसमें कर्मों के अनुसार भेद कर दिये।

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दान

स्व-धन/वस्तु का त्याग, जिससे “स्व”, “पर” का उपकार हो; “स्व” का उपकार ? अपनी आत्मा का उपकार। कैसे होगा ? जिनालय, जिनवाणी, जिन गुरु* के

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मंगल आशीष

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