Category: वचनामृत – अन्य
स्वावलम्बन
सांप के भय से गुरु से गरुडी मंत्र मत पढ़वा लेना, वरना रस्सी ही सांप बन जायेगी। थोड़ी बीमारी का ज्यादा रोना डॉक्टर से मत
साधु
साधु देखते हुये भी देखता नहीं, या उसमें कुछ और देख लेता है, जैसे कोई काम की वस्तु। सुनते हुये भी सुनता नहीं, या और
निमित्त और पुरुषार्थ
निमित्त तो दियासलाई की काढ़ी के जलने जैसा है: उतने समय में अपना दीपक जला लिया, तो प्रकाशित हो जाओगे; वर्ना गुरु ज़्यादा देर रुकते
नियंत्रण
बुरा मत बोलो, देखो, सुनो के लिये बहुत मेहनत करनी पड़ती है/दोनों हाथ से मुंह, आंख, कान बंद करने होते हैं। मुनिराज ने कहा –
मालिक
कैसी विडम्बना है कि हम जीवन-पर्यंत अपने आपको उन चीज़ों का ही मालिक मानते हैं, जो हमें बुढ़ापे में सबसे ज़्यादा परेशान करती हैं; हमारी
धर्म / नियम
धर्म कहता है – मरने से मत डरना (….मृत्यु आज ही आजाये….) । फिर कोरोना से धर्मात्मा क्यों डरता है ? नियम टूटने से ।
भावना
सोमवार – सोम (चंद्र) शीतलता; मंगल – मंगलमय; बुध – ज्ञान; गुरुवार – गुरु का दिन; शुक्रवार – भगवान को शुक्रिया; शनिवार – शनि पर
सकारात्मकता
शिक्षक ने एक Section में ३० सवाल यह कह कर दिये कि बहुत सरल हैं – सब बच्चों ने सारे ज़बाब सही दिये। वे ही
अभिषेक
इसे करते श्रावक हैं पर महत्त्व देखो – गंधोदक मुनिराज भी शिरोधार्य करते हैं, अभिषेक साधु ख़ुद नहीं कर सकते हैं। कहते हैं – हनुमान
अनित्य
Temporary Service वाले की नौकरी छूटने पर उसे उतना दु:ख नहीं होता जितना Permanent वाले को । संयोगों/सम्बंधों को अस्थायी समझने वालों को संयोगों/सम्बंधों के
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