Category: वचनामृत – अन्य
गृहस्थ
जो गृह में स्थित हो, वह “गृहस्थ”। गृहस्थ शब्द प्राकृत भाषा में “घरत्थ“* से आया है । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी *प्रवचनसार गाथा – 291
आत्म-निंदा
आत्म-निंदा निराशा का कारण नहीं, आत्मा के शुद्धिकरण में सहायक होती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
पूजादि
पूजादि धर्म नहीं, धर्म के साधन/आवश्यक हैं जैसे भोजन बनाना । दयादि धर्म हैं जैसे भोजन करना । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
क्षमा
क्षमा कैसे करें ? बस क्षमा करके/बैर छोड़कर, उनसे भी जिनको पता ही नहीं कि तुम उनसे बैर करते हो । मुनि श्री अविचलसागर जी
मत/मन भेद
मन भेद में कषाय (क्रोध, मानादि) है, मत भेद में नहीं । मुनि श्री सुधासागर जी
अधूरा ज्ञान
थोड़ी वर्षा कीचड़ करती है, पूरी वर्षा सफ़़ाई । मुनि श्री अविचलसागर जी
गुरु-लाभ
4 Steps से पूर्ण गुरु-लाभ लिया जा सकता है – 1. Near 2. Hear 3. Tear 4. Fear (आदर) मुनि श्री प्रमाणसागर जी
कर्म काटना
कर्म काटने का सरलतम उपाय – पापोदय के समय अपने कुकृतों को स्वीकारो/ प्रायश्चित लो/ आगे पुनरावृत्ति न करने का संकल्प लो । देखा भी
शब्द / भाव
सेठ की कोठी के पास ही गरीब की झोंपडी थी । गरीब लडके की माँ मरी तो उसके लड़के ने अपने शब्दों में दुःख ज़ाहिर किया
विषय-भोग
सिनेमा देखते हुये एक व्यक्ति मूंगफली खा खा कर छिलके बगल वाले की जेब में डालता जा रहा था । दूसरी तरफ बैठे मित्र ने
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