Category: वचनामृत – अन्य
क्रोध
कार का इंजन, फेल/बंद होने के काफी देर पहले से गर्म होना शुरु हो जाता है । यदि समय रहते पानी डाल कर ठंडा कर
कर्म-सिद्दांत
जैसे ऊँट की चोरी छुपती नहीं है, वैसे ही कर्म-फल को भी छुपा नहीं सकते । मुनि श्री महासागर जी
अनुभव / अनुभूति
अनुभव दूसरों का भी होता है(काम स्वयं के भी आता है) जैसे ज़हर से दूसरों को मरते देखकर होता है । अनुभूति स्वयं की ही
व्यक्तित्व निर्माण
घंटे में मधुर ध्वनि यों ही नहीं निकल आती ! पहले धातु तेज अग्नि में तपती है, सांचे में ढ़लती है फ़िर Fine Polish की
शिक्षा और नौकरी
जब तक शिक्षा का उद्देश्य नौकरी रहेगा तब तक समाज में नौकर ही पैदा होंगे, मालिक नहीं । मुनि श्री उत्तमसागर जी
प्रण
प्रण कब तक निभायें ? प्रण निभाने में व्यक्तिगत लाभ होता है, लेकिन वह प्रण जब समाज/देश/धर्म के लिये अहितकारी हो जाय तो तोड़ लेना
विनय
विनय यानि सामने वाले के अनुकूल प्रवृत्ति करना । ख़ुद से पूछें… क्या हम बड़ों/ गुरु/ शास्त्र और भगवान की विनय करते हैं ? मुनि
पूज्य / पूजक
“पूज्य” बनो, या “पूजक”, तीसरा कुछ नहीं, तीसरा तो बस “तीये” की बैठक होगी । मुनि श्री सुधासागर जी
संयम
सबसे पहला और सरल संयम है – “नज़र पर नज़र रखना” मुनि श्री अविचलसागर जी
सेवा / पूजा
दीन/हीन की सेवा के बदले में कुछ पाने की भावना नहीं रहती है, पर पूजादि के बदले में कुछ पाने की भावना प्राय: रहती है
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