Category: वचनामृत – अन्य
ख्याति
3 प्रकार की – 1. श्वान जैसी – जहाँ जहाँ मालिक जाता है, उसके पीछे पीछे चले । 2. बिल्ली जैसी – कभी साथ, कभी
आलोचना
आलोचना से लोचन खुलते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी इसलिये आलोचना का स्वागत करो (स्व+आगत)(अच्छे से बुलाना – पं.रतनलाल बैनाडा जी), स्व का हितकारी/प्रिय
सत्ता
राज-सत्ता = दबाब से चलती है, लोक-सत्ता = प्रेम से चलती है, प्रभु-सत्ता = विशुद्धि से चलती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
सपना
सपना देखना आसान, पूरा करने में ज़िंदगी भी कम पड़ जाये । ज़िंदगी को ही सपना मान लो तब सारे झंझट ही समाप्त । मुनि
सौगंध
गंध खायी नहीं जा सकती, ऐसे ही जिसकी सौगंध ली जा रही हो जैसे “भगवान की”, तो उसे भी तो खा नहीं सकते । अत:
हौंसला
चिड़ियाँ अपने बच्चों को “घौंसला” नहीं देतीं, सिर्फ ऊँचाइयाँ पाने का “हौंसला” देती हैं । मनुष्य सिर्फ घौंसले और घौंसले ही देते हैं । मुनि
एकला
अकेला चना भाड़ तो नहीं फोड़ सकता पर झाड़ जरूर उगा सकता है । शर्त है कि बीज अपना बीजपने का अहं छोड़ दे ।
घड़ी
दो प्रकार की – 1. कलाई की 2. मुसीबत की मुसीबत की खराब होने पर थोड़े समय में ठीक होगी ही । कलाई वाली ठीक
भगवान
कुछ मतानुसार भगवान पापियों का नाश करने आते हैं, अन्य मतानुसार पुण्यात्माओं के उद्धार के लिये, पर वीतराग धर्मानुसार अपने अंदर बैठे कर्मरूपी आतंकी का
अनित्य
थोड़ी दूर/देर की यात्रा के लिये रिजर्वेशन नहीं कराते हैं, विषम परिस्थितियाँ भी झेल लेते हैं कि थोड़ी देर की ही तो बात है ।
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