Category: वचनामृत – अन्य

आदत / स्वभाव

आदत अच्छी/बुरी दोनों । स्वभाव अच्छा ही । बुरी आदत पड़ने पर स्वभाव, विभाव बन जाता है । मुनि श्री सुधासागर जी

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रात्रि में कुल्ला

ना तो रात्रि में कुल्ला करें और ना ही बिना कुल्ला करे मंदिर में बोल कर अर्घ चढ़ायें (दुर्गंध न फैलायें) मुनि श्री सुधासागर जी

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वात्सल्य

शरीर से जो भी निकलता है, वह गंदा होता है, पर दूध क्यों नहीं ? क्योंकि दूध वात्सल्य से निकलता है । आर्यिका श्री सुपार्श्वमती

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रोना

रोना हो तो घर के अंदर ही रोना । दरवाजा तो हँस कर ही खोलना । यदि सामने वाले को पता लग गया कि तुम

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बुराई का आकर्षण

बुराई के प्रति आकर्षण होता ही नहीं है । जिसको बुरा सिर्फ कहा ही नहीं, मन से भी बुरा मान लिया, जैसे कूड़ा/ज़हर, तो आकर्षण

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नियति

नियति यानि योग्यता । आचार्य अकलंक देव स्वामी ने लिखा है – जिस कारण से जो कार्य होना है/हो सकता है, उसी से वह कार्य

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अप्पा

अप्पा यानि आत्मा । अप्पा से “आप” बना है । कहते हैं ना ! … “आप कैसे हैं ?” यानि आपकी आत्मा कैसी है !

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दान / त्याग

दान में वस्तु के प्रति आदर भाव होता है, संसार अच्छा चलता है । त्याग में ना आदर होता है ना हेयता, संसार घटता है

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कमाई

कमाई कितनी करें ? उतनी, जिससे अपनी जरूरतों तथा जरूरतमंदों की जरूरतों को पूरा कर सकें; (पर घमंड़ ना आने लगे/पापाचार का मन ना होने

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दुर्भाग्य

दुर्भाग्य को जीतना चाहते हो तो … सौभाग्य और दुर्भाग्य में समता भाव रखना/झेलना सीखो । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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मंगल आशीष

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