Category: वचनामृत – अन्य
नये मंदिरों की आवश्यकता
कुटुम्ब दादाजी से नहीं, पिता पुत्र से चलता है । व्यापार को भी आगे चलाने के लिये नये नये Item लाये जाते हैं। मुनि श्री
पूर्णता
यदि – 1. व्यवहार में विनम्रता 2. वाणी में मधुरता 3. चित्त में सरलता 4. जीवन में सादगी हो तो जीवन में पूर्णता आ जाती
सत्य
सत्याग्रही (सत्य के आग्रही) नहीं बनें, सत्यग्राही बनें — विनोबा सत्य किसे मानें ? वह सब सत्य है जो सच्चे देव, शास्त्र, गुरु के अनुकूल
नारी और ताड़ना
“…………….गंवार,पशु और नारी ये सब ताड़न के अधिकारी” यहाँ “नारी” वासना की प्रतीक है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
कर्म-फल
कर्म के फल में राग-द्वेष, मोह की अवस्था में होता है । दूसरी है जाग्रत अवस्था, जिसमें कर्म अपना फल तो देते हैं पर जीव
प्रकृति में दख़लंदाजी
“1985” में एक क्षुल्लक जी आहार के लिये नहीं उठ रहे थे क्योंकि एक चिड़िया अपने बच्चों को कीड़े ला लाकर खिला रही थी ।
माँ
जिसको कष्ट न मिलने पर कष्ट होता हो, उसे माँ कहते हैं। महावीर भगवान ने गर्भ में हलन-चलन बंद कर दिया, ताकि माँ को कष्ट
अहिंसा
दो प्रकार – 1. नकारात्मक – किसी को ना मारना/सताना 2. सकारात्मक – दूसरों की सेवा/रक्षा करना मुनि श्री प्रमाणसागर जी
विनय मिथ्यात्व
सच्चे डॉक्टर की सलाह ना मानकर, यदि सारे Chemists की, सारी दवायें खा लो, तो फायदा करेंगी या नुकसान ! मुनि श्री सुधा सागर जी
राग / धर्मानुराग
सच्चे देव, शास्त्र, गुरु से राग करने में दोष है, क्योंकि राग व्यक्ति/वस्तु विशेष से होता है । रागी से राग करने में कम दोष,
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