Category: वचनामृत – अन्य

साधना / तप / ध्यान

साधना – मन को साधना, तप – इच्छा निरोध, ध्यान – एक विषय पर एकाग्रता । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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ज्ञान / ध्यान

बहुत पढ़ना ज्ञान का विषय है, बार बार पढ़ना ध्यान का, जैसे माला जपना । मुनि श्री सुधासागर जी

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स्वभाव

जिसे निमित्त प्रभावित ना कर सके । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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पाप क्रियाओं के लिये धर्म

पाप क्रियाओं के लिये धर्म करने से सफलता तो मिलेगी पर उसका अंत-फल सही नहीं आयेगा, जैसे रावण का अंत-फल । मुनि श्री सुधासागर जी

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धर्म में धन

धन, धर्म-प्रभावना में आवश्यक, धर्म-साधना में बाधक । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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पुरुषार्थ / धर्मध्यान

पैर का काँटा, धर्म करने से नहीं पुरुषार्थ से निकलेगा । पर धर्मध्यान से काँटे की वेदना जरूर कम हो जायेगी । मुनि श्री सुधासागर

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सहनशीलता

हथौड़ी कांच पर गिरे तो चकनाचूर, सोने पर गिरे तो चमक । हम क्या हैं ? और क्या बनना चाहते हैं ? मुनि श्री प्रमाणसागर

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परम्परा

गुरु-परम्परा के ऊपर आगम-परम्परा होती है । आगम-परम्परा में भी,  सबसे पुरानी वाली को मान्य मानें । मुनि श्री सुधासागर जी

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गुरु-दर्शन

गुरु के समीप ही नहीं पहुँच पाते, दूर से ही दर्शन होते हैं तो दूरदर्शन पर क्यों ना करें ? सूर्य दूरदर्शन पर दिखेगा तो

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मंगल आशीष

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