Category: वचनामृत – अन्य
नियम संशोधन
नियम लेने के बाद पता लगे कि वह आगम विरुद्ध है, तो 108 बार णमोकार मंत्र पढ़कर सुधार लें । क्षु. श्री ध्यानसागर जी (यदि
चारित्र
सम्यग्दृष्टि यदि चारित्र ना ग्रहण करे तो अनंतकाल तक भटकेगा । मिथ्यादृष्टि चारित्र धारण कर ले तो निकट सुगति । चा. च. आ. श्री शांतिसागर
दु:ख में व्यवहार
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज जब कभी समस्या में होते हैं तो खूब हँसते/हंसाते हैं, जैसे सुदामा ने अपनी परेशानियाँ श्री कृष्ण को पूछने पर
साधु
श्रावक तो सम्यग्दृष्टि हो सकता है पर साधु तो अनेक श्रावकों के लिये सम्यग्दर्शन का निमित्त है, इसलिये इनको अपना आचरण निर्दोष रखना ही होगा
भगवान का प्रभाव
असाता/पापोदय की तपती धूप से भगवान रूपी घना वृक्ष स्वत: छाया देता है, मांगनी नहीं पड़ती है । क्षु. श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी
पीत लेश्या
काम करने से पहले सोचता है । वात्सल्य का भाव बना रहता है । विवेक पूर्वक काम करता है । मनमानी नहीं करता है ।
श्रुतज्ञान
केवलज्ञान के लिये द्रव्य-श्रुत की आवश्यकता नहीं, जैसे शिवभूति महाराज का श्रुतज्ञान । पर भाव-श्रुत पूरा होना चाहिये । मुनि श्री समयसागर जी
धर्म
धर्म, अच्छे को ग्रहण करना और अच्छा बनना । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
माला में मन
माला में मन इसलिये नहीं लगता क्योंकि सुबह से शाम तक वह चलायमान ही रहता है, वही संस्कार माला के समय रहते हैं । समाधान
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