Category: वचनामृत – अन्य

भगवान के दर्शन

मंदिर में भगवान की मूर्ति में मूर्तिवान को देखते तो चेहरे पर मुस्कान ना आती ! जैसी प्रियजनों को देखते समय आ जाती है ।

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दान

दान दिया नहीं जाता, बोया जाता है । मुनि श्री सुधासागर जी

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प्रेरणा / जागृति

प्रेरणा थोड़े समय के लिये ही कार्य करती है, अंतर-जागृति, निरंतरता प्रदान करती है । क्षु.श्री ध्यानसागर जी

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मरघट

ऐसा कोई घर है जिसमें मरण ना हुआ हो ? हम जिसे मरघट कहते हैं वह तो “चलघट” है, मरघट तो हमारे घर हैं ।

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उपाध्याय

जो संघ में रहकर मुनियों को शिक्षण दें । मुनि श्री सुधासागर जी

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यंत्र

यंत्र को भगवान से टिकाकर नहीं रखना चाहिये । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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भ्रम

स्पर्श, रस, गंध और वर्ण पुदगल में हैं और आत्मा उसे आत्मसात कर अपने में मान रही है ! (खुद को शरीर मान बैठी है)

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कालद्रव्य

कालद्रव्य सूक्ष्म भी है (निश्चय से), बादर भी है (व्यवहार से) । मुनि श्री विनिश्चयसागर जी

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एकलव्य / अर्जुन

इनमें से कौन बड़ा ? जिन्हें गुरु प्राप्त नहीं होते, उनमें एकलव्य बड़ा, जिन्हें गुरु प्राप्त होते हैं, उनमें अर्जुन बड़ा । मुनि श्री सुधासागर

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अमूढ़-दृष्टि / स्थिति-करण

रेवती रानी ने समवसरण को नहीं स्वीकारा, राजा श्रेणिक ने गलत आचरण वाले मुनि को नमोस्तु किया, सही कौन ? दोनों सही, रेवती रानी ने

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मंगल आशीष

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