Category: वचनामृत – अन्य
अमूढ़-दृष्टि / स्थिति-करण
रेवती रानी ने समवसरण को नहीं स्वीकारा, राजा श्रेणिक ने गलत आचरण वाले मुनि को नमोस्तु किया, सही कौन ? दोनों सही, रेवती रानी ने
भगवान के जन्म
भगवान पापियों का नाश करने नहीं, पुण्यात्माओं का उद्धार करने जन्मते हैं, जैसे जमीन में पानी ढ़ूंढ़ने के लिये नारियल का प्रयोग किया जाता है
पूजा में स्थापना
बैठकर पूजा करने वालों को ठौने में स्थापना बैठकर ही करना चाहिये, वरना स्थापित द्रव्य नाभि से नीचे हो जायेगा । मुनि श्री सुधासागर जी
पुण्य
पुण्य की ज़रूरत तब तक, जब तक हमसे पाप हो रहा है । कीचड़ पाप है, इसे साफ करने पुण्य रूपी जल चाहिये, बिना पानी
मुनि
आदिनाथ भगवान के समय से लेकर पंचम काल के अंत तक तीनों प्रकार के मुनि थे, हैं और रहेंगे । भाव/द्रव्य/भ्रष्ट लिंगी । मुनि श्री
पीछी
श्रावकों को पीछी का उपयोग नहीं करना चाहिये क्योंकि यह मुनियों का उपकरण है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
योग / उपयोग
योग से शरीर और मन नियंत्रित, उपयोग से चेतना । मुनि श्री सुधासागर जी
आचार्य कुंदकुंद और विदेह यात्रा
यदि आचार्य कुंदकुंद ने सीमंधर स्वामी के दर्शन किये होते तो वे कहीं तो लिखते – कि साक्षात सीमंधर भगवान ने ऐसा कहा था ।
नियति
भरत को सब ओर से दबाब ड़ाला गया कि वे अयोध्या की गद्दी पर बैठें – माँ, गुरू, राम सबने । भरत – मेरे भाग्य
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