Category: वचनामृत – अन्य
त्रस
पंचास्तिकाय में वायु/अग्निकायिक को त्रस, उनकी स्वगति की अपेक्षा कहा है । मुनि श्री सुधासागर जी
अनुमान / अनुभव
अनुमान अप्रत्यक्ष, अनुभव प्रत्यक्ष । कभी कभी अनुमान अनुभव से ज्यादा कारगर हो जाता है, जैसे ज़हर खाने से मृत्यु हो जाती है । मुनि
दिगम्बरत्व
वैज्ञानिक को अद्भुत (संसारिक) सिद्धांत मिल गया तो निर्वस्त्र होकर सड़क पर दौड़ता हुआ युरेका युरेका पुकारने लगा । दिगम्बर साधू को तो अद्भुत आत्मिक
जिनवाणी और संतोष
भगवान की वाणी का अमृतपान करके भी जीवन में संतोष क्यों नहीं आ रहा है ? अमृत पीने से संतोष आये ही, ऐसा नियम नहीं
अभाव
अभाव दु:खदायी नहीं, अभाव की अनुभूति दु:ख देती है । सबसे ज्यादा अभाव में तो साधू रहते हैं, पर ना उनका अभाव उन्हें दु:खी करता
परोपकार
शुद्ध वह जिसका मन शुद्ध हो, और मन शुद्ध होता है परोपकार से । (परोपकार अपना भी । सिर्फ अपनों का नहीं, वह तो हिंसक
पुण्योदय / पापोदय
पुण्योदय में संकट नहीं आते, पापोदय में यदि धर्म करें तो संकट टलेगा तो नहीं क्योंकि धर्म अन्याय नहीं होने देगा । पर भविष्य में
आशीर्वाद
“आ” से आनंद, “श” से शिव/मुक्ति । “व” से विशुद्ध, “द” से दया ।। आशीर्वाद से नकारात्मता कम होती है, सकारात्मकता और आत्मविश्वास बढ़ता है
भावना
एक राज्य में राजा अल्पायु ही होते थे । राजा के पूछने पर गुरु ने कहा कि जब वो हरा पेड़ सूख जायेगा तब बताऊंगा ।
आरती
बड़ों की आशिका अपनी ओर लें, ताकि उनके गुण/ज्योति हममें भी आयें, छोटों (दुल्हे आदि) की अपनी ओर से उनकी ओर करते हैं, ताकि हमारी
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