Category: वचनामृत – अन्य

सफलता

सफलता किसी पर आश्रित नहीं होती – पैसा, प्रसिद्धि आदि पर नहीं। गुणों को निखारना/उन्हें बनाये रखना सफलता है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Read More »

जीवन से प्रेम

जीवन से प्रेम तो साधू ही करते हैं क्योंकि वे उसकी क़ीमत जानते हैं/सुख में रहते हैं । भिखारी/दुखी के मरने पर सब संतोष करते

Read More »

जानना / मानना

जानने के साथ मानने वाले युधिष्ठिर, और सिर्फ़ जानने वाले दुर्योधन बनते हैं । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Read More »

सदुपयोग / दुरुपयोग

सदुपयोग – समय पर किया गया कार्य, दुरुपयोग – समय निकलने के बाद किया गया कार्य । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Read More »

साधु

साधु ब्राम्हण होता है – ज्ञान की अपेक्षा, साधु वैश्य होता है – हमेशा फ़ायदे का काम करता है , साधु क्षत्रिय होता है –

Read More »

जन्म / मरण

जनसाधारण जन्म से खुश, मरण से डरता है; साधुजन मृत्यु का महोत्सव मनाते हैं, जन्म से डरते हैं (गर्भ की पीड़ा/बार-बार जन्म से) । मुनि

Read More »

धर्म

धर्म क्या है ? अधर्म का अभाव ही धर्म है । (और अधर्म को तो हम सब खूब समझते ही हैं) मुनि श्री प्रमाणसागर जी

Read More »

मंगल आशीष

Archives

Archives

March 4, 2018

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930