Category: वचनामृत – अन्य
त्याग
सही त्याग वस्तु का नहीं, उसके प्रति लगाव का होता है। इसीलिये तप को त्याग के पहले कहा जाता है। तप से मोह कम होता
मन
मन तो कद से बड़ा पलंग चाहता है। मिल जाने पर और-और बड़ा माँगने लगता है। पहले से ज्यादा खाली हो जाता है, हालांकि बाहर
दान
“दान” शब्द का प्रयोग तो बहुत जगह होता है जैसे तुलादान, पर वह दान की श्रेणी में नहीं आयेगा। ऐसे ही रक्तदान यह सहयोग/ करुणा
धर्म
धर्म अंदर से भरता है। प्राय: यह भ्रम रहता है कि बाहर से भरता है इसीलिये धर्म पर से विश्वास घट रहा है। धर्म (सार्वभौमिक
तिलक
तिलक लगाने की परम्परा क्यों ? आचार्य श्री विद्यासागर जी… ठंडी में केसर (गरम होती है) का, गर्मियों में चंदन में कपूर मिलाकर लगाने से
कर्तृत्व
कर्ता, भोक्ता, स्वामित्व भावों को कर्तृत्व भाव कहते हैं। पर इनसे अहम् आने की सम्भावना रहती। ये भाव संसार तथा परमार्थ दोनों में आते हैं।
आत्मा / कर्म
पानी में काई होती है, तब पानी काई के रंग का दिखने लगता है। पर पानी काई नहीं हो जाता है। आत्मा में कर्म हैं।
कर्म
कर्म हमको घुमाता (घन-चक्कर करता) है, पर वह भी हमारे द्वारा घूमता है (कर्म अपना फल देकर दुबारा फिर-फिर बंध कर आता रहता है)। क्षु.
भगवान
जब भगवान हर जगह है तो मंदिर क्यों जायें ? भगवान हर जगह हैं कहाँ ? हाँ ! हर जीव भगवान बन सकता है। जैसे
प्रणाम
प्रणाम 3 प्रकार के → 1. पंच प्रणाम → घुटने मोड़े, हाथ जोड़े, सिर झुका लिया। 2. षट प्रणाम → घुटने मोड़े, हाथ जोड़े, सिर
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