Category: वचनामृत – अन्य

अभिमान

“मैं हूँ” ऐसा सोचने/ मानने में हानि नहीं। “मैं कुछ हूँ” अभिमान दर्शाता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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मौन

बाह्य मौन —-> मौन रखना; अंतरंग मौन –> मौन रहना (बोलने के भाव ही न आना)। मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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सपने

भविष्य बताने वाले सपने तो प्राय: महापुरुषों को ही आते हैं। साधारण लोगों के सपने तो मन के भावों/ स्वभाव पर ही आधारित होते हैं।

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चरण / साधु

भगवान के चरण-चिह्न स्त्रियाँ छू सकती हैं, साधु के चरण क्यों नहीं ? दादा जी का बहू लिहाज करतीं हैं, उनके फोटो का क्यों नहीं

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प्रवचन

प्रवचन सिर के ऊपर से निकले तो वक्ता की कमी, हृदय के ऊपर से निकले तो श्रोता की कमी। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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Tension

अपने सारे Tensions गुरु/ भगवान को Transfer कर दें। जैसे बचपन में माँ को Transfer करके सो जाते थे, वह जागकर ध्यान रखतीं थीं। पर

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त्याग

सही त्याग वस्तु का नहीं, उसके प्रति लगाव का होता है। इसीलिये तप को त्याग के पहले कहा जाता है। तप से मोह कम होता

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मन

मन तो कद से बड़ा पलंग चाहता है। मिल जाने पर और-और बड़ा माँगने लगता है। पहले से ज्यादा खाली हो जाता है, हालांकि बाहर

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दान

“दान” शब्द का प्रयोग तो बहुत जगह होता है जैसे तुलादान, पर वह दान की श्रेणी में नहीं आयेगा। ऐसे ही रक्तदान यह सहयोग/ करुणा

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धर्म

धर्म अंदर से भरता है। प्राय: यह भ्रम रहता है कि बाहर से भरता है इसीलिये धर्म पर से विश्वास घट रहा है। धर्म (सार्वभौमिक

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मंगल आशीष

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