Category: वचनामृत – मुनि श्री क्षमासागर

मान/अपमान

अपमान सहना कठिन है, पर मान को सहना उससे भी कठिन है । गुरुवर मुनि श्री क्षमासागर जी

Read More »

आत्मीयता

आत्मीयता आत्मानुशासन की पृष्ठभूमि में ही फलित होती है। गुरूवर मुनि श्री क्षमासागर जी

Read More »

क्रोध

किसी को कुँऐ में गिरता देख, तुम भी कुँऐ में गिरते हो ? यदि नहीं, तो किसी को क्रोध करते देखकर क्रोध क्यों करते हो

Read More »

कर्म

कर्म उनको पैदा करने वाले से बड़े नहीं होते । जो पैदा करना जानता है वह उन्हें समाप्त भी कर सकता है । गुरुवर मुनि

Read More »

संसार भ्रमण

जो बच्चे कक्षा में बार बार फेल होते हैं, उन्हें उसी कक्षा में बार बार रहना परता है । यदि हम कर्मोदय में बार बार

Read More »

सुख

थोड़े से, क्षणिक सांसारिक सुख के बदले में अनंत/शास्वत आत्मिक सुख को छोड़े/भूले हुये हैं । ऐसा ही है जैसे मंज़िल के रास्ते में थोड़ी

Read More »

रुकना

रुकते तो मेले में हैं, संसार के मेले में गति कहाँ ? इसीलिये कहा है – रुकना मृत्यु है, मुक्ति से दूर होना है ।

Read More »

मंगल आशीष

Archives

Archives
Recent Comments

September 16, 2015

December 2024
M T W T F S S
 1
2345678
9101112131415
16171819202122
23242526272829
3031