Category: वचनामृत – मुनि श्री क्षमासागर

दान

एक कंजूस सेठ थे। धर्म सभा में आखरी पंक्ति में बैठते थे। कोई उनकी ओर ध्यान भी नहीं देता था। एक दिन अचानक उन्होंने भारी

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केवलज्ञान

एक चित्रकार था दूसरा विचित्रकार( विचित्र चित्रकार), दोनौं में competition हुआ – एक हाल की एक दीवार चित्रकार को दी गयी और दूसरी विचित्रकार को । 

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दौलत

दो लात मारे वह दौलत । जब दौलत आती है तब सीने पर लात मारती है, सीना फूल जाता है । जब जाती है तब

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अहंकार

हीनता का भाव भी अहंकार पैदा करता है । दूसरे के सम्मान में अपना अपमान मानना भी अहंकार है । मुनि श्री क्षमासागर जी

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क्रोध

क्रोध से बचने के उपाय – विलम्ब करें । कारणों और औचित्य पर विचार करें । सकारात्मक सोचें । वातावरण को हल्का बनाऐं । मुनि

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क्षमा

शांत-स्वभावी की क्षमता बढ़ जाती है। झगडे में शोर बहुत होता है, सुलह शान्ति से होती है । आत्मा का स्वभाव झुकना है, पर हम

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ब्रम्ह्चर्य

पर के पास जितना जाओगे, आत्मा से उतने ही दूर हो जाओगे । शुक देव को 20 साल की अवस्था में वैराग्य हो गया ओर

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संसार

एक मालिक रोज चुटकुला सुनाता था, और सब Employees जोर जोर से हंसते थे, एक दिन एक Employee नहीं हंसा, कारण बताया – मैं नौकरी

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दुःख

एक दुःखी आदमी देवता के पास जाकर बहुत दुःखी हुआ, उसकी शिकायत थी कि इस दुनिया में सबसे ज्यादा दुःख  मुझे ही क्यों मिले हैं

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मंगल आशीष

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