Category: वचनामृत – अन्य
प्रणाम
प्रणाम 3 प्रकार के → 1. पंच प्रणाम → घुटने मोड़े, हाथ जोड़े, सिर झुका लिया। 2. षट प्रणाम → घुटने मोड़े, हाथ जोड़े, सिर
स्वभाव
आत्मभूत = जो अपने स्वभाव में हो/ आत्मा में हो। स्व–स्वभाव में अचेतन भी रहते हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र- शंका समाधान) (फिर
पूजा
भगवान महावीर मुनि अवस्था में विहार करते हुए एक खंडहर में ध्यान मग्न हो गये। बरसात होने लगी, उनके सिर पर पानी की धार पड़ने
सूतक
मरण का सूतक 12 दिन का, 13वें दिन पूजादि कर सकते हैं। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी (चौथी-पाँचवीं पीढ़ी को 6 दिन, छठी-सातवीं को 3
मोह
जब तक मोह का ताज पहने रहोगे, तब तक मोहताज ही रहोगे। आर्यिका श्री पूर्णमति माताजी
मृत्यु भय
मृत्यु भय किसे ? जिसको जीवन से जितना मोह/ लगाव होता है, उतना ही उसे मृत्यु से भय लगता है। जिसको “जीवन (शरीर)” से नहीं
गुरु
शिक्षक जो सिखाये। टीचर जो पढ़ाये। गुरु जो चलाये। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
स्वभाव
दो प्रकार का… 1. आत्मा का स्वभाव… फलों को खाकर दयापूर्वक गुठली बो देना। 2. वस्तु का स्वभाव…..फलों के पेड़ फल पैदा करते हैं अपनी
परिग्रह
5 पाप बीमारियां हैं। 4 (हिंसा, झूठ, चोरी, कुशील) के तो लक्षण दिखते हैं/ इलाज सम्भव है, पर परिग्रह के लक्षण अंतरंग हैं, बाहर से
पंडित
पंडित विशेषण है, वाचक है। जबकि विद्वान ज्ञानवाचक, उनके लिये “विद्वत श्री” शब्द प्रयोग करना चाहिये, जिसमें सम्मान भी है तथा ज्ञानी होने का प्रतीक।
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