Category: वचनामृत – अन्य
शरीर / आत्मा
यदि शरीर को ज्यादा महत्व दिया तो आत्मा Neglect हो जाती है जैसे एक बेटे को ज़रूरत से ज्यादा महत्व देने पर दूसरा बेटा Neglected
विसंवाद
दो लोग संवाद करते हैं, वे दो नहीं छह होते हैं – दोनों के तीन तीन मन, वचन, काय। (जब इस तथ्य को ध्यान में
पुण्य-लाभ
स्वयं के स्नान करने का उद्देश्य यदि भगवान का अभिषेक हो तो बहुत पुण्य-बंध। भगवान का अभिषेक करते समय यदि अपने नहाने का ध्यान किया
गुरु
गुरु दर्शन कठिन (चक्षु इन्द्रिय से) गुरु आर्शीवाद दुर्लभ (कर्ण इन्द्रिय से) गुरु वचन दुर्लभ से दुर्लभ (मन, कर्ण इन्द्रिय से) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
परिक्रमा
भगवान/ गुरु की परिक्रमा क्यों ? सीमा निर्धारण, मेरा तेरे अलावा इस सीमा के बाहर कोई और नहीं। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
नारी
नारी को ताड़न का अधिकारी क्यों कहा ? माँ, बहन, पत्नी को नहीं कहा। नारीत्व पर अंकुश की बात कही है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर
छोटे का महत्व
इकाई से ही दहाई आदि बड़ी-बड़ी संख्यायें बनतीं है। मुनि श्री सुप्रभसागर जी
लत
Addiction बुरी चीजों का तो बुरा होता ही है, अच्छी आदतों का भी अच्छा नहीं होता। चाहे वह पूजा/ स्वाध्याय/ दानादि का ही क्यों न
मूर्ति का महत्व
प्रत्यक्ष से ज्यादा उसकी कल्पना में आनंद आता है। कल्पना का अंत नहीं, साक्षात दर्शन के बाद अंत आ जाता है। मूर्ति के निमित्त से
शिक्षक / गुरु
जो मात्र किताबी शिक्षा दे, वह शिक्षक। इनसे पढ़ने वाले छात्र कहलाते हैं। ये शिक्षा Career/ पैसा कमाने के लिये। गुरु शिक्षा के साथ Implementation
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