Category: वचनामृत – अन्य
मन, दिल, दिमाग
मन –> संस्कारानुसार काम करता है, दिल –> रागादि से, दिमाग –> बाहरी Information से। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी
प्रमाणिकता
अनुभव/ इंद्रियों पर आधारित प्रमाणिकता गलत भी हो सकती है जैसे पीलिया वाले के रंगों का अनुभव। गुरु/ शास्त्र पर आधारित ज्ञान प्रमाणिक होता है।
कठिन ज्ञान
जो विषय कठिन हो, समझ में न आये; उसे जानने के प्रयास से पुरुषार्थ और ज्ञान में वृद्धि होती है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
दान
माताजी से प्रश्न → बड़े-बड़े लोग बड़े-बड़े दान करते हैं, हमें अनुमोदना करनी चाहिये या नहीं? (क्योंकि अधिक धन तो अधिक दोष सहित आता है)
जिज्ञासा / समाधि
जिज्ञासा अपूर्णता से पैदा होती है या महत्वाकांक्षा बहुत हो जाने पर। जिज्ञासायें समाप्त होने पर/ संतुष्ट होना ही समाधि है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर
निंदा
कड़वी निबोली को चींटी भी नहीं काटतीं, मीठी होने पर नोचने/ खसोटने लगती हैं। यदि आपको कोई सता रहा है/ निंदा कर रहा है तो
मनस्वी / यशस्वी
मनस्वी (मन का स्वामी) ही तपस्वी बन सकता है। तपस्वी, तेजस्वी और तेजस्वी ही यशस्वी बनता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
शरीर / आत्मा
यदि शरीर को ज्यादा महत्व दिया तो आत्मा Neglect हो जाती है जैसे एक बेटे को ज़रूरत से ज्यादा महत्व देने पर दूसरा बेटा Neglected
विसंवाद
दो लोग संवाद करते हैं, वे दो नहीं छह होते हैं – दोनों के तीन तीन मन, वचन, काय। (जब इस तथ्य को ध्यान में
पुण्य-लाभ
स्वयं के स्नान करने का उद्देश्य यदि भगवान का अभिषेक हो तो बहुत पुण्य-बंध। भगवान का अभिषेक करते समय यदि अपने नहाने का ध्यान किया
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