Category: वचनामृत – अन्य
मन
उच्छृंखल घोड़े को साध दिया जाय तो बिना लगाम खींचे अपने घर को वापस आ जाता है। ऐसा ही मन है। क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
अहिंसा / विनय
अक्षर/ शब्दों को लिखकर काटने/ मिटाने में भाव-हिंसा तथा अंकों को काटने/ मिटाने में ज्ञान के प्रति अविनय है। मुनि श्री मंगल सागर जी
पुरुषार्थ
1. गृहस्थ बार-बार हानि होने पर भी धनोपार्जन का पुरुषार्थ करता रहता है। 2. साधु हीन पुरुषार्थ होते हुए भी परीषह (कठिनाइयों) जय करने में
भाग्य / पुरुषार्थ
भाग्य = पिछले साल का बीज। पुरुषार्थ = बीज बोना, फसल की देखभाल करना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
नींव में सोना
नींव में सोना डालने का औचित्य नहीं, चाहे नींव मंदिर की ही क्यों न हो। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
राजनीति / धर्म
राजनीति नीति पर आधारित, सत्य ना भी हो। धर्म सत्य पर ही आधारित। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
धन / धर्म
धन (ही) कमाने से जीवन का निधन है, धर्म कमाने से जीवन धन्य होता है। मुनि श्री प्रमाणसागर जी
अभ्यास
विषकन्याओं के प्रभाव से बचाने के लिये राजाओं को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में विष दिया जाता था, चाणक्य भी चंद्रगुप्त को विष दिलवाते थे। हमको भी
वचन
वचन 2 प्रकार – 1. शिष्ट प्रयोग 2. दुष्ट प्रयोग कुल 12 प्रकार के, इनमें 11 दुष्ट प्रयोग, जैसे अव्याख्यान (टोकना), कलह। शिष्ट प्रयोग –
पर्याप्त
संसार में प्राप्त को पर्याप्त मानने को कहा, तो परमार्थ में ? दोनों में एक ही सिद्धांत… अपनी-अपनी क्षमतानुसार, आकुलता रहित, पूर्ण पुरुषार्थ। दोनों ही
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