Category: पहला कदम
धर्म के लिए समय
धर्म के लिए समय निकालने/ न निकालने की बात ही क्यों उठती है ! सम्यक् श्रद्धा का अंदर बना रहना ही धर्म है। हाँ! गलत
श्रद्धा
आचार्य श्री कुंदकुंद कहते हैं…. चारित्र से गिरे तो भ्रष्ट, लेकिन सच्ची श्रद्धा से गिरे तो महाभ्रष्ट। श्रद्धा (सच्ची) सिद्ध बनने की कच्ची सामग्री है।
पुरुषार्थ
समवसरण में सीढियां चढ़नी नहीं पड़तीं; सब कुछ देवकृत/ स्वचालित। लेकिन पहली सीढ़ी तक जाने का पुरुषार्थ तो करना ही होगा, बाह्य परकोटे के नृत्यादि
कषाय
1. अनंतानुबंधी… अनंत से बंध रही है, अनंत के लिये बंध रही है। इसलिए उसे हत्यारी कहा जाता है। 2. अप्रत्यास्थान… बेचारी (सिर्फ़ सम्यग्दर्शन करा
म्लेच्छ
म्लेच्छादि खण्डों में क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन हो सकता है, सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति नहीं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान – 37)
द्रव्य/ गुण/ पर्याय
द्रव्य तथा गुण पृथक नहीं। पर्याय गुण की भी जैसे केवल ज्ञान, पर्याय द्रव्य की भी जैसे सिद्ध भगवान। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान–
क्रिया / भाव
पूजादि करते समय प्राय: हमारा उपयोग गलत जगह चला जाता है जैसे दूसरे ने क्रिया गलत कर दी(चावल की जगह बादाम चढ़ा दिये), उपयोग पूजा/
अनेकांत
जो जीवन में अनेकांत पालन करते हैं वे आदर पाते हैं (क्योंकि उनसे अनबन होगी ही नहीं)। वैसे भी अनेकांत में छोटा “अ” है जो
तीन मूर्तियाँ
एक सी तीन मूर्तियों की कीमत 1 हजार, 1 लाख, 1 करोड़| कारण ? 1. एक कान से धागा, दूसरे कान से बाहर → कर्णस्थ
दोष
चल दोष → मंदिर हमने बनवाया है। मल दोष → शंकित/ भोगों की अकांक्षा। अगाढ़ दोष → शांति के लिये शांतिनाथ भगवान। मुनि श्री प्रणम्यसागर
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