Category: पहला कदम
पुरुषार्थ
मुनिपद भारी पुरुषार्थ का फल होता है। पर कुछ मुनि बनने के बाद भी कषायों को क्यों नहीं नियंत्रित कर पाते ? पुरुषार्थ दो प्रकार
सासादन/ सम्यक्-मिथ्यात्व
“सासादन” के साथ “सम्यग्दर्शन” लगाते हैं(सासादन-सम्यग्दर्शन) क्योंकि जीव सम्यग्दर्शन से गिरकर आया है। सम्यक्-मिथ्यात्व में दोनों ओर (सम्यक्त्व तथा मिथ्यात्व) से आता है इसलिये इसका
सम्यग्दर्शन / लब्धि
5 लब्धियाँ प्रथमोपशम के समय, क्षयोपशम सम्यग्दर्शन के समय नहीं, सिर्फ सम्यग्दर्शन के भाव तथा सम्यक् प्रकृति का उदय। क्षायिक सम्यग्दर्शन में भी लब्धि नहीं,
गर्भज
प्रकार → 1. जरायुज → जरायु + ज (उत्पन्न) जरायु = झिल्ली/ आवरण (मांस रक्त का)। मनुष्य गाय आदि के। 2. अंडज → अंड +
आस्रव
चारों ओर से कर्मों का धीरे-धीरे रिसना। इसलिये पता नहीं लगता/ हम रोकने का प्रयास नहीं करते। दूसरा कारण है सूक्ष्मता (कर्म वर्गणाओं की)। शांतिपथ
नियति / पुरुषार्थ
नियति मिथ्या नहीं यदि पुरुषार्थ के साथ उसे स्वीकारें तो। क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
भाव
क्षयोपशमिक-भाव… जो ज्ञान उत्पन्न हो गया है तथा जो उत्पन्न नहीं हुआ हो, उनके सद्भाव से उत्पन्न भाव। औदयिक–भाव…. कषाय, शरीरादि से जुड़े रहते हैं।
साधना
हिमालय पर चढ़ने के लिये बहुत साधना करते हैं, जान तक दे देते हैं। पाते क्या हैं ? कुछ मिनटों का सुख। मोक्ष के अनंत
विग्रह गति
कार्मण काययोग से विग्रह गति में कर्मबंध/ उदय, क्षयोपशम आदि बने रहते हैं। कर्मों के साथ कर्मबंध के जो अपने ही प्रत्यय पड़े हुए हैं
सल्लेखना
श्री कर्मानंद जी (जैनेतर) जैन धर्म से बहुत प्रभावित थे पर सल्लेखना को आत्मघात मानते थे। थोड़े दिन बाद उन्हें बहुमूत्र रोग हो गया। अशुद्धि
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