Category: पहला कदम
प्रमाद
तीर्थंकरों में प्रमाद कैसे समझें, उनके तो वर्धमान चारित्र होता है? तीर्थंकर आहार के लिये जब उठते हैं तब छठवाँ गुणस्थान होता है, यानी प्रमत्त
सम्यग्दर्शन
क्षायिक सम्यग्दर्शन में दर्शन मोहनीय के क्षय में 4 अनंतानुबंधी लीं। वेदक सम्यग्दर्शन में दर्शन मोहनीय के उदय में सम्यक् प्रकृति ली। उपशम सम्यग्दर्शन में
वेदक सम्यग्दर्शन
वेदक = अनुभव करने वाला। किसका ? सम्यक् प्रकृति का। वेदक सम्यग्दर्शन: दोष सहित, अगाढ़। जैसे लाठी यदि ज़मीन में गढ़ी नहीं है, बस, ज़मीन
निमित्त / उपादान
हर वस्तु में दो शक्तियां → निमित्त तथा उपादान। नर्मदा की निमित्त शक्ति अन्य नदियों से बहुत ज्यादा, तभी तो इनके तटों से अनेक जीव
बुद्ध
बुद्ध यानी वैराग्य को प्राप्त। प्रकार => 1. बोधित बुद्ध – वैराग्य के उपदेश सुनकर एक समय में उत्कृष्ट से बोधित बुद्ध = 108 स्वर्ग
व्रत
2 प्रकार के –> प्रकीर्णक – एक व्रत भी ले सकते हैं। समूह (Set) – 5 अणुव्रत, 7 शीलव्रत। दोनों के लेने पर गुणस्थान परिवर्तन
संयम मार्गणा
पहले व्रत-धारण; उन्हें संभालने के लिए समितियां। फिर भी कषाय आयेंगी ही; उनके परिहार के लिये दंड-विरति* तथा इंद्रियजय**। व्रत-धारण, जैसे गर्भ-धारण। समिति-पालन, जैसे बच्चे
मुनियों की शक्ति
700 मुनियों पर अंतराय के समय विष्णुकुमार मुनि जी ने विक्रिया से कदम सुमेरू और मानुषोत्तर पर्वत पर क्यों रखे, बाली का राज्य तो अयोध्या
चार इंद्रिय
चतुरिंद्रिय जीव भी उड़ लेते हैं और पंचेंद्रिय भी। फिर फ़र्क क्या ? चतुरिंद्रिय जीव कम ऊँचाई तक उड़ पाते हैं, जैसे मक्खी आदि; पंचेंद्रिय
आहारक/अनाहारक काल
आहारक काल –-> जघन्य = क्षुद्र जीव का काल(-)3 समय (विग्रह गति का)। अनाहारक काल –-> जघन्य = 1 समय उत्कृष्ट = 3 समय मुनि
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