Category: पहला कदम
द्रव्य-श्रुत ज्ञान
जितने शब्द उतने द्रव्य-श्रुत। निगोदिया जीवों के भी द्रव्य-श्रुत ज्ञान होता है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
अवधिज्ञान
अवधिज्ञान को हम बहुत महत्त्वपूर्ण मानते हैं क्योंकि वह हमारे पास नहीं है। उससे ज्यादा महत्त्वपूर्ण नरभव, अहिंसा धर्म आदि हैं। जन्म से मिली चीजों
परिग्रह
आचार्य श्री विद्यासागर जी का संकल्प है कि आत्मा के अलावा कोई और परिग्रह नहीं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
आत्मा का स्पर्श
1. सिद्ध भगवानों की आत्मायें, अनंत एकेंद्रियों को प्रभावित नहीं करतीं क्योंकि वे शुद्ध हैं। 2. कषाय समुद्घात पास में आये जीवों को तथा तैजस
सुमेरु पर अभिषेक
जब सुमेर और सौधर्म इन्द्र के विमान में बाल के बराबर Gap है तो भगवान का अभिषेक कैसे ? पांडुक शिला चूलिका से 40 योजन
अरिहंत / सिद्ध
अरिहंत/ सिद्ध सम्यग्दर्शन रूप, जिनको जीव/ अजीव प्रत्यक्ष दिखते हैं इसीलिये उनकी प्रतीति, अवगाढ़ होती है क्योंकि उन्होंने जैसा सोचा/ सुना/ पढ़ा, वही प्रत्यक्ष दिखने
पुरुष
पुरुष की निरुत्तिपरक परिभाषा (नाम के अनुसार, लाक्षणिक/ शब्द के अनुसार नहीं) → पुरु + ष = उत्कृष्ट गुणों में + शमन/ प्रवर्तन कर भोग
“पर” चिंतन
कहा है → “….”पर” चिंतन अधमाधम(अधम से अधम)” प्रश्न → तो हम तिर्यंचों पर दया क्यों करें ? उनकी चिंता क्यों करें ? “पर” चिंतन
अपराध की समाप्ति
अपराध की समाप्ति निम्न क्रियाओं से – 1. प्रतिक्रमण 2. प्रत्याख्यान 3. प्रायश्चित निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
सामायिक
सामायिक – महाव्रती खड़गासन में, देशव्रती पद्मासन में, अविरती लेट कर भी, मिथ्यादृष्टि लेटकर करवटें बदलता रहता है, सामायिक करता ही नहीं। चिंतन
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